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विवाह में सात फेरे ही क्यों लेते हैं?

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विवाह में सात फेरे ही क्यों लेते हैं? 🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰 विवाह का अर्थ 🔰➖➖🔰 ✍️विवाह को शादी या मैरिज कहना गलत है। विवाह का कोई समानार्थी शब्द नहीं है। विवाह= वि+वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है- विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है, लेकिन हिन्दू धर्म में विवाह बहुत ही भली-भांति सोच- समझकर किए जाने वाला संस्कार है। इस संस्कार में वर और वधू सहित सभी पक्षों की सहमति लिए जाने की प्रथा है। हिन्दू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संबंध से अधिक आत्मिक संबंध होता है और इस संबंध को अत्यंत पवित्र माना गया है। ॐ यदैषि मनसा दूरं, दिशोऽ नुपवमानो वा। हिरण्यपणोर् वै कर्ण, स त्वा मन्मनसां करोतु असौ।। -पार.गृ.सू. 1.4.15 विवाह एक संस्कार ============== सात फेरे या सप्तपदी : हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। विवाह में जब तक 7 फेरे नहीं हो जाते, तब तक विवाह संस्कार पूर्ण नहीं माना जाता। न एक फेरा कम, न एक ज्यादा। इसी प्रक्रिया में दोनों 7 फेरे ल

तंत्र प्रयोग ( काला जादू ) होने के योग और लक्षण :-

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तंत्र प्रयोग ( काला जादू ) होने के योग और लक्षण :- 💀➖💀➖💀➖💀➖💀➖💀➖💀➖💀 नकारात्मक तंत्र-मंत्र को वो लोग अपनाते हैं जोकि दूसरों की सफलता से ईर्ष्या करते हैं। इस तरह के व्यक्तियों के अंदर नकारात्मकता, ईर्ष्या, लालच, निराशा, कुंठा इस तरह से घर कर जाती है कि वे दूसरों की सफलता, उन्नति, समृद्धि को स्वीकार नहीं कर पाते हैं तथा वे उस व्यक्ति से प्रतिशोध लेने के लिए काले जादू के द्वारा उसके लिए परेशानियां पैदा कर आनंद का अनुभव करते हैं। काले जादू का प्रयोग दूसरे व्यक्ति को हानि पहुंचाने या चोट पहुंचाने के लिए कुछ विशेष तरह की क्रियाओं के द्वारा सम्पन्न किया जाता है। इस प्रथा का प्रभाव हजारों मील दूर बैठे व्यक्ति पर भी देखा जा सकता है।   शास्त्रों में काले जादू को अभिचार के नाम से भी जाना जाता है अर्थात ऐसा तंत्र-मंत्र जिससे नकारात्मक शक्तियों को जागृत किया जाता है। काले जादू अर्थात नकारात्मक तंत्र-मंत्र का मुख्य उद्देश किसी व्यक्ति को उस स्थान से भगाना, उसे परेशान करना या उसे अपने वश में करके उसका इस्तेमाल करना या उसे बर्बाद करना होता है।    काले जादू अर्थात नकारात्मक तंत्र-मंत्र से ग्रसित

महिलाओं का मोटापा और संतान समस्या का कारण कुंडली मे अशुभ बृहस्पति की स्थिती

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महिलाओं का मोटापा और संतान समस्या का कारण कुंडली मे अशुभ बृहस्पति की स्थिती 🌼➖🌼➖🌼➖🌼➖🌼➖🌼➖🌼➖🌼 🌼🍁गुरु कुण्डली में कमजोर हो या पाप ग्रहों के प्रभाव में हो, नीच का हो, तो व्यक्ति को बहुत सी बीमारियों का मालिक बन देता है जैसे 🌼गाल-ब्लेडर,में स्टोन्स  🌼एनीमिया 🌼शरीर में अकारण बहुत दर्द 🌼दिमागी रुप से बेचैनी 🌼पेट में गड़बड़ 🌼बवासीर 🌼वायु विकार 🌼कान 🌼फेफडों में पानी 🌼नाभी खिंचना  🌼चक्कर आना  🌼बदहजमी 🌼हर्निया   🌼मोतियाबिन्द  🌼अण्डाश्य का बढना 🌼बेहोशी 🌼मधुमेह 🌼पित्ताशय से संबधित बिमारियां होती है। कुंडली में गुरु के नीच वक्री या बलहीन होने पर व्यक्ति के  🌼🌼शरीर की चर्बी भी बढने लगती है जिसके कारण वह बहुत मोटा भी हो जाता है.   🌼पाचन तंत्र कमजोर होता जाता है ,मसल्स कमजोर होते जाएंगे जिसकी वजह से मोटापा और दर्द बढ़ता जाता है . 🌼यदि गुरु बहुत कमजोर होंगे तो ये दर्द आपको सामान्य जीवन भी नही जीने देंगे। 🌼शरीर की टिश्यू कमजोर होने के कारण आपके कमर एवं जांघो के निचले हिस्से में लगातार और असहनीय दर्द की समस्या बनी रहेगी। 🌼👩महिलाओं में खराब गुरु शरीर मे आलस बढ़ाता जाएगा जिस

सर्वदोष नाश के लिये रुद्राभिषेक विधि -

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रुद्राभिषेक - 🕉️➖🕉️ सर्वदोष नाश के लिये रुद्राभिषेक विधि - 🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰 रुद्राभिषेक अर्थात रूद्र का अभिषेक करना यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। जैसा की वेदों में वर्णित है शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है। क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पटक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है। रूद्रहृदयो

शादी में विलंब या शादी न होने से हैं परेशान, जानें कारण और करें समाधान

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शादी में विलंब या शादी न होने से हैं परेशान, जानें कारण और करें समाधान 🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰 ✍️मेरी शादी कब होगी, जीवनसाथी कैसा होगा, विवाह में कोई विलंब तो नहीं और अगर है तो क्या? और शादी के उपाय क्या हैं? विवाह योग्य युवक और युवतियों के मन में ऐसे कई सवाल अाते हैं, लेकिन उचित जानकारी के अभाव में इसका जवाब नहीं मिल पाता। भारतीय संस्कृति में 16 संस्कारों में विवाह संस्कार भी आता है, जो अहम है। कई बार शादी नहीं होती और कई बार शादी के बाद संबंध विच्छेद हो जाता है। यह सब कुछ ग्रहों के फेर के कारण होता है। कुंडली का सातवां घर बताता है कि आपकी शादी किस उम्र में होगी। शादी के लिए कौन सी दिशा उपयुक्त रहेगी जहां प्रयास करने पर जल्द ही शादी हो सके। कुल मिलाकर जब एक से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव सातवें घर पर हो तो विवाह में विलंब होता है। ग्रहों के कारण अाती है विवाह में बाधा वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब कुंडली, यदि छठे घर से संबंधित दशा या अन्तर्दशा चल रही हो तो विवाह में विलंब या विघ्न उत्पन्न होता है। कई बार विलंब से शादी होने पर भी उपयुक्त जीवन साथी नहीं मिल पाता है। यहां हम विवाह में विलंब

गोरख_वचन

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#गोरख_वचन ◆◆◆◆◆◆◆ सत नमो आदेश,गुरीजी को आदेश,ॐ गुरूजी।। गोरख बोली सुनहु रे अवधू,  पंचों पसर निवारी अपनी आत्मा एपी विचारो,  सोवो पाँव पसारी “ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई असं द्रिधा करी धरो ध्यान |  अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म ज्ञान नासा आगरा निज ज्यों बाई |  इडा पिंगला मध्य समाई ||  छः साईं सहंस इकिसु जप |  अनहद उपजी अपि एपी || बंक नाली में उगे सुर |  रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||  उल्टी कमल सहस्रदल बस |  भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश ||  गगन मंडल में औंधा कुवां,  जहाँ अमृत का वासा |  सगुरा होई सो भर-भर पिया,  निगुरा जे प्यासा । । 🚩जै श्री महाकाल🚩आदेश आदेश नमो नमः aacharya Goldie Madan Whats app +16475102650 and +919717032324

अपने ऊपर तान्त्रिक प्रयोग का कैसे पता करें

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*अपने ऊपर तान्त्रिक प्रयोग का कैसे पता करें*    💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀 *टोने -टोटके हैं या नहीं इन लक्षणों से जानें* 🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰 *अक्सर लोग सोचते हैं की किसी ने उनपर कोई जादू टोना या तांत्रिक प्रयोग कर दी है तो आईये जानते हैं –* 1) रात को सिरहाने एक लोटे मैं पानी भर कर रखे और इस पानी को गमले मैं लगे या बगीचे मैं लगे किसी छोटे पौधे मैं सुबह डाले 3 दिन से एक सप्ताह मे वो पौधा सूख जायेगा  । 2) रात्रि को सोते समय एक हरा नीम्बू तकिये के नीचे रखे और प्रार्थना करे कि जो भी नेगेटिव क्रिया हूई इस नीम्बू मैं समाहित हो जाये । सुबह उठने पर यदि नीम्बू मुरझाया या रंग काला पाया जाता है तो आप पर तांत्रिक क्रिया हुई है। 3) यदि बार बार घबराहट होने लगती है, पसीना सा आने लगता हैं, हाथ पैर शून्य से हो जाते है । डाक्टर के जांच मैं सभी रिपोर्ट नार्मल आती हैं।लेकिन अक्सर ऐसा होता रहता तो समझ लीजिये आप किसी तान्त्रिक क्रिया के शिकार हो गए है । 4) आपके घर मैं अचानक अधिकतर बिल्ली,सांप, उल्लू, चमगादड़, भंवरा आदि घूमते दिखने लगे ,तो समझिये घर पर तांत्रिक क्रिया हो रही है। 5) आपको अचानक भूख लगती ले

नाथ_सम्प्रदाय

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#नाथ_सम्प्रदाय ◆◆◆◆◆◆◆◆◆ प्राचीन काल से चले आ रहे नाथ संप्रदाय को गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ ने पहली दफे व्यवस्था दी। गोरखनाथ ने इस सम्प्रदाय के बिखराव और इस सम्प्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया। गुरु और शिष्य को तिब्बती बौद्ध धर्म में महासिद्धों के रुप में जाना जाता है। परिव्रराजक का अर्थ होता है घुमक्कड़। नाथ साधु-संत दुनिया भर में भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम चरण में किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं या फिर हिमालय में खो जाते हैं। हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध, जटाधारी धूनी रमाकर ध्यान करने वाले नाथ योगियों को ही अवधूत या सिद्ध कहा जाता है। ये योगी अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे 'सिले' कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को 'सींगी सेली' कहते हैं। इस पंथ के साधक लोग सात्विक भाव से शिव की भक्ति में लीन रहते हैं। नाथ लोग अलख (अलक्ष) शब्द से शिव का ध्यान करते हैं। परस्पर 'आदेश' या आदीश शब्द से अभिवादन करते हैं। अलख और आदेश शब्द का अर्थ प्रणव या परम पुरुष होता है। जो नागा (दिगम्

🔥🔥 शत्रु दमन भैरव साधना🔥🔥

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🔥🔥 शत्रु दमन भैरव साधना🔥🔥 शत्रुओं से रक्षा एवं उनके शत्रु नाश के लिये यह साधना  उन साधकों को करना चाहिये जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष शत्रुबाधाओं का सामना कर रहे हों। इस हेतु शुभमुहूर्त में सवाकिलो बूंदी के लड्डू, नारियल, अगरबत्ती और लाल पुष्प की माला से भैरवजी का पूजन करें। पूजन से पहले सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करें, तत्पश्चात् अपना संकल्प बोलकर मंत्र की एक माला करें। यह प्रयोग प्रारम्भ करते हुए निरन्तर 21 दिनों तक करना है। इसके बाद प्रातःकाल 7 बार पढ़ना है। इस प्रयोग से जीवन में शत्रु का दमन होना शुरू हो जाएगा । 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 पड़ता है। प्रारंभ में जो पूजन सामग्री दी गई है, वह प्रथम और अन्तिम दिन भैरवजी को अर्पित करनी है। शेष दिनों में धूप-दीप करने के पश्चात् केवल मंत्रजप ही करना है।                     🌞 मंत्र 🌞 हमें जो सतावै, सुख न पावै सातों जन्म । इतनी अरज सुन लीजै, वीर भैरों आज तुम || जितने होंय सत्रु मेरे, और जो सताय मुझे । वाही को रक्तपान, स्वान को कराओ तुम || मार-मार खड्गन से, काट डारो माथ उनके। मास रक्त से नहावो, वीर भैरों तुम । कालका भवानी, सिंहवाहिनी

🔯🚩गुरु मँत्र क्यो आवश्यक है?🚩🔯

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🔯🚩गुरु मँत्र क्यो आवश्यक है?🚩🔯 क्या कारण है कि लोगों को मंत्र गुप्त रखने के लिए कहा जाता है? मंत्र दीक्षा का अर्थ है कि जब तुम समर्पण करते हो तो गुरु तुममें प्रवेश कर जाता है, वह तुम्हारे शरीर, मन, आत्मा में प्रविष्ट हो जाता है। गुरु तुम्हारे अंतस में जाकर तुम्हारे अनुकूल ध्वनि की खोज करेगा। वह तुम्हारा मंत्र होगा। और जब तुम उसका उच्चारण करोगे तो तुम एक भिन्न आयाम में एक भिन्न व्यक्ति होओगे। जब तक समर्पण नहीं होता, मंत्र नहीं दिया जा सकता है। मंत्र देने का अर्थ है कि गुरु ने तुममें प्रवेश किया है, गुरु ने तुम्हारी गहरी लयबद्धता को, तुम्हारे प्राणों के संगीत को अनुभव किया है। और फिर वह तुम्हें प्रतीक रूप में एक मंत्र देता है जो तुम्हारे अंतस के संगीत से मेल खाता हो। और जब तुम उस मंत्र का उच्चार करते हो तो तुम आंतरिक संगीत के जगत में प्रवेश कर जाते हो, तब आंतरिक लयबद्धता उपलब्ध होती है। मंत्र तो सिर्फ चाबी है। और चाबी तब तक नहीं दी जा सकती जब तक ताले को न जान लिया जाए। यही कारण है कि मंत्रों को गुप्त रखा जाता है। अगर तुम अपना मंत्र किसी और को बताते हो तो वह उसका प्रयोग कर सकता है । य

कितने लोग जानते हैं यह क्या है ? और इसके क्या लाभ हैं ?

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कितने लोग जानते हैं यह क्या है ? और इसके क्या लाभ हैं ? 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺   श्री विद्या के यंत्र को ‘श्रीयंत्र’ या ‘श्रीचक्र’ कहते हैं। ‘श्रीयंत्र’ भगवती त्रिपुर सुंदरी का यंत्र है। श्रीयंत्र को यंत्रराज, यंत्र शिरोमणि, षोडशी यंत्र व देवद्वार भी कहा गया है। श्रीयंत्र में देवी लक्ष्मी का वास माना जाता है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति तथा विकास का प्रतीक होने के साथ मानव शरीर का भी द्योतक है। श्री शब्द का अर्थ लक्ष्मी, सरस्वती, शोभा, संपदा, विभूति से किया जाता है। यह यंत्र श्री विद्या से संबंध रखता है। श्री विद्या का अर्थ साधक को लक्ष्मी़, संपदा, विद्या आदि हर प्रकार की ‘श्री’ देने वाली विद्या को कहा जाता है। श्री चक्र पराशक्ति का ब्रह्मांडीय उत्सर्जन है और पृथ्वी उनके उत्सर्जन में से एक है। दूसरे शब्दों में, श्री चक्र पराशक्ति का लौकिक रूप है। ऐसा कहा जाता है कि श्री चक्र में शिव और शक्ति दोनों की उपस्थिति का एहसास होना चाहिए। इसमें पाँच त्रिभुज होते हैं जो नीचे की ओर होते हैं, चार त्रिभुज ऊपर की ओर होते हैं। पांच अधोमुखी त्रिभुज स्त्री स्वरूपा हैं और चार ऊपर की ओर मु

कामदायिनी_षोडशी_साधन

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#कामदायिनी_षोडशी_साधन ।। ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ "पीत्वा पीत्वा पुनर्पित्वा पतित भूतले"इतना अधिक पियो को धरती पर गिर पड़ो। षोडशी पूजा में साधक भगवतीरूपी कन्या या स्त्री को कारण वारि यानी मद्य अर्पण करते है और स्वयं भी प्रसाद  रूप में इतना अधिक मद्य पिते है की उन्हें अपना होश नहीं रहता ,इतना अधिक पियो को धरती पर गिर पड़ो।मद्य पिने से मनुष्य अपने होश-हवास खो बैठता है।किसी भी नशीली वस्तु के सेवन से शरीर के तंतुओ पे एक प्रकार की तीव्रता आ जाती है और मद्य में ये प्रभाव है  की वह  शरिर और मन की अच्छी-बुरी प्रवृत्तियों को उभार देती है।क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को,कामी व्यक्ति के काम को,इसी प्रकार उस व्यक्ति के शरीर व मन में बUसने वाले गुणों और दुर्गुणों को उभार देती है।और अपने ही शरिर  की सुधा नहीं रहती। स्त्री पुरुष के सम्बन्ध के समय जो चरम आनंद की स्थिति होती है उसे विश्यानंद की संज्ञा दी गई है,स्त्री सम्बन्ध से जो विषयानंद प्राप्त होता है वह परमात्मा के आत्मा के मिलने के परमानंद से कुछ ही कम है।विषयानंद को परमानंद का सहोदर माना जाता है। बहुत से सम्प्रदाय सही मार्ग दर्शन नहीं कर पाने के कारण

शिवजी_की_प्रिय_वस्तुएं

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#शिवजी_की_प्रिय_वस्तुएं ********************** शिवजी की पूजा में शिवलिंग अभिषेक और उस पर अर्पित की जाने वाले चीजें अलग-अलग होती है जो भगवान शिव को अतिप्रिय है।जिनकी जानकारी नीचे दी गई है।शिवाभिषेक में जल सर्वोत्तम और हर स्थान पर उपलब्ध होता है।जलाभिषेक भगवान शिव को बहुत प्रिय हैं।इससे मन शांत होता है एवम मन स्नेहमय हो जाता है।जल के अलावा भी जिन वस्तुओं का नाम दिया गया है उनसे शिवजी का अभिषेक करने से भगवान शिव की कृपा-आशीर्वाद ,कांतिमय काया,सौम्यता प्राप्त होती है। वही दरिद्रता का नाश होता है।जीवन सुख मय व्यतीत होता है।समस्त सिद्धियों के दाता भगवान शिव प्रसन्न होकर समस्त सिद्धियों को प्रदान करते है। १.जल  २.केसर  ३.चीनी  ४.इत्र  ५.दुध  ६.दही  ७.घी  ८.चंदन  ९.शहद  १०.भाँग 🚩जै श्री महाकाल🚩आदेश आदेश नमो नमः 📞+ 16475102650 and +919717032324 Aacharya Goldie Madan नोट:-बिना गुरु या मार्गदर्शक के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।

श्री त्रिपुरसुंदरी कवच

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🌹 1.. श्री त्रिपुरसुंदरी प्रात: स्मरण स्तोत्र हिन्दी पाठ 🌹2..श्री  त्रैलोक्य मोहन महात्रिपुरसुंदरी कवच            हिन्दी पाठ 🌹3.. श्री त्रिपुरसुंदरी कवच हिन्दी पाठ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं क ऐ ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ भगवति त्रिपुरसुंदरी मम सर्व कार्य सिद्धिम देही देही       कामेश्वरि नमः ॐ ह्रीं ऐं सर्व काम्य सिद्धि महात्रिपुरसुदर्यै फट् ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्रीत्रिपुरसुंदर्यै नमः 🌹🌹1..श्रीत्रिपुरसुन्दरी प्रातः स्मरणम् स्तोत्र🌹🌹🌹         श्रीमदादिशंकराचार्य कृत स्तोत्र  हिन्दी पाठ जिनके नीले केश अत्यधिक मनोहर एवं कस्तूरी की दिव्य सुगन्ध से युक्त हैं, जो नवीन मोतियों के हार से सुशोभित हैं ऐसी भगवती श्रीललिता जो कमल के समान नेत्रों वाली हैं उनका मैं प्रातः काल में स्मरण करता हूँ। जिनका चूड़ा अखण्ड पुण्य राशि से निर्मित है, जिनके शरीर की शोभा उत्तप्त स्वर्ण के सदृश है, जो देवी मुनियों व ऋषियों के मानस की राजहंसी हैं ऐसी परमेश्वरी श्रीललिता का मैं प्रातः काल में स्मरण करता हूँ । जो चतुरा है, साम्राज्य प्रदान करने वाली हैं, जिनके विशाल न

देवपूजन के नियम

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देवपूजन के नियम 〰️💐💐💐〰️💐💐💐〰️💐💐💐〰️ 1👉  घर में पूजा करने वाला एक ही मूर्ति की पूजा नहीं करें। अनेक देवी-देवताओं की पूजा करें। घर में दो शिवलिंग की पूजा ना करें तथा पूजा स्थान पर तीन गणेश नहीं रखें। 2👉शालिग्राम की मूर्ति जितनी छोटी हो वह ज्यादा फलदायक है। 3👉 कुशा पवित्री के अभाव में स्वर्ण की अंगूठी धारण करके भी देव कार्य सम्पन्न किया जा सकता है। 4👉 मंगल कार्यो में कुमकुम का तिलक प्रशस्त माना जाता हैं। पूजा में टूटे हुए अक्षत के टूकड़े नहीं चढ़ाना चाहिए। 5👉 पानी, दूध, दही, घी आदि में अंगुली नही डालना चाहिए। इन्हें लोटा, चम्मच आदि से लेना चाहिए क्योंकि नख स्पर्श से वस्तु अपवित्र हो जाती है अतः यह वस्तुएँ देव पूजा के योग्य नहीं रहती हैं। 6👉  तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए क्योंकि वह मदिरा समान हो जाते हैं। 7👉 आचमन तीन बार करने का विधान हैं। इससे त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश प्रसन्न होते हैं। दाहिने कान का स्पर्श करने पर भी आचमन के तुल्य माना जाता है। 8👉 कुशा के अग्रभाग से देवताओं पर जल नहीं छिड़के। 9👉 देवताओं को अंगूठे से नहीं मले। चकले पर से चंदन क

अपराधक्षमापणस्तोत्रम्

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#अपराधक्षमापणस्तोत्रम्  ********************* ॐ अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया। दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि।।१।। आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।२।। मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि। यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।।३।। अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् । यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः ।। ४।। सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके । इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ।। ५।। अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रोन्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् । तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ।। ६।। कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे । गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ।। ७।। गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्। सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसात्सुरेश्वरि।।८।। ।। इति अपराधक्षमापणस्तोत्रं समाप्तम्।।                     (श्रीदुर्गासप्तशती अनुसार) 🚩जै श्री महाकाल🚩आदेश आदेश नमो नमः Aacharya Goldie Madan 📞+ 16475102650 and +919717032324 नोट:-बिना गुरु या मार्गदर्शक के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग

श्रीपद्मावती सहस्रनामस्तोत्रम् पदमावती कवचम्

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1..🌹🌹🌹श्रीपद्मावती सहस्रनामस्तोत्रम्🌹🌹🌹 2..🌹🌹 पदमावती कवचम् 🌹🌹 पदमावती देवी की साधना वैष्णव मत,शक्ति मत, और जैन मत में अलग-अलग स्वरूप में होती है वैष्णव मत में तिरूपति बालाजी भगवान वेंकटेश्वर  की पत्नी पदमावती देवी है  जो लक्ष्मी अवतार है।। जो स्वम्भू रूप से कमल-पुष्प से उत्पन्न होने के कारण पदमावती कहलाई। शाक्त  मत में पदमावतीसर्वज्ञेश्वर भैरव की शक्ति है। और महालक्ष्मी के तांत्रिक रूप की प्रतीक है। जैन धर्म में पदमावती यक्षिणी देवी है जो धरणेन्द्र यक्ष की पत्नी हैं और पारसनाथ तीर्थंकर की  रक्षिका शक्तिहैं   यह दोनों पूर्व जन्म में नाग नागिन थे । बाद में पारसनाथ जी की कृपा से यक्ष यक्षिणी बनें और उनके सेवक बने बौद्ध तंत्र में भी इनके यक्षिणी रूप की साधना होती है यद्यपि इन सभी संप्रदायो के बहुत से  साधना मंत्रो में काफी समानता है।एक ही मंत्र विभिन्न मत के लोग अपनी भावनानुसार प्रयोग करते हैं। निम्नलिखित स्तोत्र शक्ति संप्रदाय की पदमावती देवी को समर्पित है  ।जो शक्ति रूपा है और महालक्ष्मी का तांत्रिक रूप  भी समाहित किए हुए हैं 1....🌹 श्री पदमावती सहस्त्रनाम स्तोत्र 🌹 ॐ श्रीगण