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Showing posts from April, 2022

पाशुपतास्त्र दिव्य प्रयोग

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।।हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ वन्दे ।। 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️      👉पाशुपतास्त्र दिव्य प्रयोग 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️   👉 ऐसे दिव्य शस्त्र स्वयं शिवजी प्रसन्न हो तो महान ऋषिमुनियो या महापुरुषों को समाज सुरक्षा हेतु प्रदान करते थे । तंत्रमे सिद्ध हुवे सिढो द्वारा शस्त्र संधान हो सकता है । दिव्य शस्त्र मानसिक शक्ति और ध्वनि से उपार्जित ऊर्जा शक्ति द्वारा भी उपयोग किया जा सकता है । सामान्य उपासक इनका नित्य पाठ करके अपने पर आई कोई भी विपदा का नाश कर सकता है और जीवन को सुखी समृद्ध कर सकता है ।      पाशुपतास्त्र एक ऐसा अस्त्र है जो पूरे हिंदू इतिहास में सबसे शक्तिशाली और भयंकर हथियारों में शुमार है  । जो की  भगवान शिव और देवी काली का मुख्य  हथियार माना जाता है।  कहा जाता है की इसे मन, आंखों, शब्दों या धनुष से छोड़ा जाता था । पाशुपतास्त्र की शक्ति ऐसी थी कि इसे कम दुश्मनों या कम योद्धाओं के खिलाफ इस्तेमाल करने से मना किया जाता था।  यह हथियार सभी प्राणियों के लिए अपार नरसंहार करने और उन पर काबू पाने में सक्षम है।  इसलिए सलाह दी जाती है कि पाशुपतास्त्र का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

व्यापार वृद्धि शाबर मंत्र

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👾।।हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ वन्दे ।👾। 〰️〰️〰️〰️👾👾👾👾〰️〰️👾 🌹व्यापार वृद्धि शाबर मंत्र----- 〰️〰️〰️🌐🌐🌐🍊〰️〰️〰️  👉विधिः- व्यापार का दैनिक कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व यदि इस मंत्र का 108 बार उच्चारण करके दुकान खोलें और व्यापार का दैनिक कार्य प्रारम्भ करें तो उस दिन ब्रिकी बढ़ती है और किसी प्रकार का कोई उपद्रव या परेशानी नहीं आती। इस मंत्र को सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है।  नित्य दुकान खोलने से पूर्व एक माला फेरनी पर्याप्त है –   👉मन्त्रः- “श्री शुक्ले महाशुक्ले कमलदल निवासे महालक्ष्म्यै नमः लक्ष्मी माई सत्य की सवाई आवो माई करो भलाई, ना करो तो सात समुद्रों की दुहाई, ऋद्धि सिद्धी नौ नाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई।” व्यापार वृद्धि के लिए मंत्र 〰️〰️〰️〰️〰️🍎〰️ . 👉मन्त्रः- “भंवरवीर तू चेला मेरा खोल दुकान कहा कर मेरा उठे जो डंडी बिके जो माल भंवरवीर की सौंह नहि खाली जाय।” विधिः- बिक्री बढ़ाने के लिए यह अनुभूत मंत्र है । इसका प्रयोग केवल रविवार के दिन किया जाता है और 3 रविवार तक लगातार करने से सफलता मिलती है। प्रयोग इस प्रकार से है कि काले उड़द को 21 बार अभिमंत्रित कर व्यापार

शत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्रम्

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।👾।हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ वन्दे ।।👾 〰️〰️〰️〰️〰️〰️👾👾👾〰️〰️〰️〰️〰️ .    👉शत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्रम्-- 〰️〰️〰️👾👾〰️〰️〰️〰️  👉विनियोगः-  〰️〰️〰️〰️〰️ ॐ अस्य श्रीशत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र-मन्त्रस्य ज्वालत्-पावक ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवता, मम शत्रु-पाद-मुख-बुद्धि-जिह्वा-कीलनार्थ, शत्रु-नाशार्थं, मम स्वामि-वश्यार्थे वा जपे पाठे च विनियोगः।  👉ऋष्यादि-न्यासः- 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️  शिरसि ज्वालत्-पावक-ऋषये नमः।  मुखे अनुष्टुप छन्दसे नमः,  हृदि श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवतायै नमः,  सर्वाङ्गे मम शत्रु-पाद-मुख-बुद्धि-जिह्वा-कीलनार्थ, शत्रु-नाशार्थं, मम स्वामि-वश्यार्थे वा जपे पाठे च विनियोगाय नमः।।  👉कर-न्यासः-  〰️〰️〰️〰️ ॐ ह्रां क्लां अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ ह्रीं क्लीं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ ह्रूं क्लूं मध्यमाभ्यां नमः। ॐ ह्रैं क्लैं अनामिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रौं क्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रः क्लः करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः।  👉हृदयादि-न्यासः- 〰️〰️〰️〰️〰️  👉 ॐ ह्रां क्लां हृदयाय नमः। ॐ ह्रीं क्लीं शिरसे स्वाहा। ॐ ह्रूं क्लूं शिखायै वषट्। ॐ ह्रैं क्लैं कवचाय हुम्। ॐ ह्रौं क्लौं नेत्र-त्

आत्मा का सफर

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👾।।हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ वन्दे ।।👾 〰️〰️〰️〰️〰️👾👾👾👾〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ।।।।।।।।👉आत्मा का सफर----- 〰️👉👉👉👉👾👾〰️〰️〰️〰️〰️〰️  👉मरणोपरांत की क्रियाओं के बाद आत्मा का सफर जारी रहता है, एक पड़ाव के बाद दूसरा पड़ाव, फिर तीसरा फिर चौथा, ये अनंत और अंतहीन यात्रा है।   👉मनुष्य जब अपनी पूरी आयु को भोग बुढ़ापे में शरीर को त्यागता है तो प्राण अपनी जीवंतता, अपनी इस जन्म के हिस्से की शक्ति और ऊर्जा खो चुके होते हैं ।तब आत्मा को विश्राम की ज़रुरत होती है और आत्मा शरीर त्याग देती है, व शून्य काल में चली जाती है जिसे सधारण मनुष्य के लिये समझ पाना बहुत कठिन है । इसे ही ज्योति का परम ज्योति में समाना कहते हैं या कह सकते हैं कि परमात्मा अपने मूल में चली गयी व कुछ समय बाद वहां से पुन: ऊर्जा प्राप्त कर नए शरीर को धारण करती है ।  👉पर इसके बीच में एक और भी रहस्य है जो बहुत ही रोमांचक है, वह है कर्म योग जो आत्मा के ऊपर आवरण की तरह रहने वाला मन करता है ।आत्मा उसमे साझी नहीं बल्कि साक्षी होती है। पर मन का यह कर्मयोग आत्मा की गति और जन्मों को ज़रूर प्रभावित करता है, जिसे हम दुःख सुख भी कहते हैं या किस्मत

श्रीअन्नपूर्णासहस्रनामस्तोत्रम्

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॥|||| || 👉 श्रीअन्नपूर्णासहस्रनामस्तोत्रम् (श्रीरुद्रयामले* कैलासशिखरासीनं देवदेवं महेश्वरम् । प्रणम्य दण्डवद्भूमौ पार्वती परिपृच्छति ॥ १॥ श्रीपार्वत्युवाच । अन्नपूर्णा महादेवी त्रैलोक्ये जीवधारिणी । नाम्नां सहस्रं तस्यास्तु कथयस्व महाप्रभो ॥ २॥ श्रीशिव उवाच । शृणु देवि वरारोहे जगत्कारणि कौलिनि । आराधनीया सर्वेषां सर्वेषां परिपृच्छसि ॥ ३॥ सहस्रैर्नामभिर्दिव्यैस्त्रैलोक्यप्राणिपूजितैः । अन्नदायास्स्तवं  दिव्यं यत्सुरैरपि वाञ्छितम् ॥ ४॥ कथयामि तव स्नेहात्सावधानाऽवधारय । गोपनीयं प्रयत्नेन स्तवराजमिदं शुभम् ॥ ५॥ न प्रकाश्यं त्वया भद्रे दुर्जनेभ्यो निशेषतः । न देयं परशिष्येभ्यो भक्तिहीनाय पार्वति ॥ ६॥ देयं शिष्याय शान्ताय गुरुदेवरताय च । अन्नपूर्णास्तवं देयं कौलिकाय कुलेश्वरी ॥ ७॥ ॐ अस्य श्रीमदन्नपूर्णासहस्रनामस्तोत्रमालामन्त्रस्य, श्रीभगवान् ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः, प्रकटगुप्तगुप्ततर सम्पदाय कुलोत्तीर्ण निगर्भरहस्याति रहस्यपरापरातिरहस्यातिपूर्वाचिन्त्यप्रभावा भगवती श्रीमदन्नपूर्णादेवता, हलो बीजं, स्वराश्शक्तिः, जीवो बीजं, बुद्धिश्शक्तिः, उदानो बीजं, सुषुम्ना नाडी, सरस्वती शक्तिः, धर्मार्थकाम