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* मातंगी मंत्र साधना* Matangi sadhna

* मातंगी मंत्र साधना* वर्तमान युग में, मानव जीवन के प्रारंभिक पड़ाव से अंतिम पड़ाव तक भौतिक आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है । व्यक्ति जब तक भौतिक जीवन का पूर्णता से निर्वाह नहीं कर लेता है, तब तक उसके मन में आसक्ति का भाव रहता ही है और जब इन इच्छाओ की पूर्ति होगी,तभी वह आध्यात्मिकता के क्षेत्र में उन्नति कर सकता है । मातंगी महाविद्या साधना एक ऐसी साधना है जिससे आप भौतिक जीवन को भोगते हुए आध्यात्म की उँचाइयो को छु सकते है । मातंगी महाविद्या साधना से साधक को पूर्ण गृहस्थ सुख ,शत्रुओ का नाश, भोग विलास,आपार सम्पदा,वाक सिद्धि, कुंडली जागरण ,आपार सिद्धियां, काल ज्ञान ,इष्ट दर्शन आदि प्राप्त होते ही है । इसीलिए ऋषियों ने कहा है - " मातंगी मेवत्वं पूर्ण मातंगी पुर्णतः उच्यते " इससे यह स्पष्ट होता है की मातंगी साधना पूर्णता की साधना है । जिसने माँ मातंगी को सिद्ध कर लिया फिर उसके जीवन में कुछ अन्य सिद्ध करना शेष नहीं रह जाता । माँ मातंगी आदि सरस्वती है,जिसपे माँ मातंगी की कृपा होती है उसे स्वतः ही सम्पूर्ण वेदों, पुरानो, उपनिषदों आदि का ज्ञान हो जाता है ,उसकी वाणी में

अष्ट काली मन्त्र

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अष्ट काली मन्त्र ॥  ऊं अष्टकाल्यै क्रीं श्रीं ह्रीं क्रीं सिद्धिं मे देहि दापय नमः ॥ दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जाप करें. दिगम्बर अवस्था में जाप करें या काले रंग का आसन वस्त्र रखें. रुद्राक्ष या काली हकीक माला से जाप करें. पुरश्चरण १,२५,००० मन्त्रों का होगा. रात्रिकाल में जाप करें. जप के बाद १२५०० मन्त्र में स्वाहा लगाकर सामान्य हवन सामग्री या कालीमिर्च से हवन  करें. Aacharya Goldie Madan Whats app +16475102650 and +919717032324

माँ चंडी रहस्य और साधना विधान

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माँ चंडी रहस्य और साधना विधान सप्तशती महत्व और चंडी रहस्य साधना  माँ दुर्गा के महात्म्य का ग्रन्थ सप्तशती शाक्त संप्रदाय का सवार्धिक प्रचलित ग्रन्थ है और यह भी निर्विवाद सत्य है कि जितना शाक्त सम्पद्रय में है उतना ही शैव-वैष्णव और अन्य संप्रदाय में भी है सभी संप्रदाय में समान रूप से प्रचलित होने वाला एक मात्र ग्रन्थ सप्तशती है पाश्चात्य के प्रसिद्द विद्वान और  विचारक मि. रोला  ने अपने विचारों में सहर्ष स्वीकार किया है कि “सप्तशती के नर्वाण मन्त्र को  (ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै)  संसार की सर्वश्रेष्ठतम प्रार्थनाओं में परिगणित करता हूँ” | सौम्या सौम्य तरा शेष सौमेभ्यस्वती सुंदरी  ----- “देवि तुम सौम्य और सौम्यतर तो हो ही, परन्तु इतना ही, जितने भी सौम्य पदार्थ है, तुम उन सब में सब की अपेक्षा अधिक सुंदरी हो” | ऋषि गौतम मार्कण्डेय आठवे मनु की पूर्व कथा के माध्यम से नृपश्रेष्ठ सुरथ एवं वणिक श्रेष्ठ समाधी को पात्र बनाकर मेधा ऋषि के मुख से माँ जगदम्बा के जिन स्वरूपों का वर्णन किया गया है .. वह सप्तसती का मूल आख्यान है | शक्ति-शक्तिमान दोनों दो नहीं है अपितु