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Showing posts from October, 2022

अपने ऊपर तान्त्रिक प्रयोग का कैसे पता करें

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*अपने ऊपर तान्त्रिक प्रयोग का कैसे पता करें*    💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀 *टोने -टोटके हैं या नहीं इन लक्षणों से जानें* 🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰 *अक्सर लोग सोचते हैं की किसी ने उनपर कोई जादू टोना या तांत्रिक प्रयोग कर दी है तो आईये जानते हैं –* 1) रात को सिरहाने एक लोटे मैं पानी भर कर रखे और इस पानी को गमले मैं लगे या बगीचे मैं लगे किसी छोटे पौधे मैं सुबह डाले 3 दिन से एक सप्ताह मे वो पौधा सूख जायेगा  । 2) रात्रि को सोते समय एक हरा नीम्बू तकिये के नीचे रखे और प्रार्थना करे कि जो भी नेगेटिव क्रिया हूई इस नीम्बू मैं समाहित हो जाये । सुबह उठने पर यदि नीम्बू मुरझाया या रंग काला पाया जाता है तो आप पर तांत्रिक क्रिया हुई है। 3) यदि बार बार घबराहट होने लगती है, पसीना सा आने लगता हैं, हाथ पैर शून्य से हो जाते है । डाक्टर के जांच मैं सभी रिपोर्ट नार्मल आती हैं।लेकिन अक्सर ऐसा होता रहता तो समझ लीजिये आप किसी तान्त्रिक क्रिया के शिकार हो गए है । 4) आपके घर मैं अचानक अधिकतर बिल्ली,सांप, उल्लू, चमगादड़, भंवरा आदि घूमते दिखने लगे ,तो समझिये घर पर तांत्रिक क्रिया हो रही है। 5) आपको अचानक भूख लगती ले

नाथ_सम्प्रदाय

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#नाथ_सम्प्रदाय ◆◆◆◆◆◆◆◆◆ प्राचीन काल से चले आ रहे नाथ संप्रदाय को गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ ने पहली दफे व्यवस्था दी। गोरखनाथ ने इस सम्प्रदाय के बिखराव और इस सम्प्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया। गुरु और शिष्य को तिब्बती बौद्ध धर्म में महासिद्धों के रुप में जाना जाता है। परिव्रराजक का अर्थ होता है घुमक्कड़। नाथ साधु-संत दुनिया भर में भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम चरण में किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं या फिर हिमालय में खो जाते हैं। हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध, जटाधारी धूनी रमाकर ध्यान करने वाले नाथ योगियों को ही अवधूत या सिद्ध कहा जाता है। ये योगी अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे 'सिले' कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को 'सींगी सेली' कहते हैं। इस पंथ के साधक लोग सात्विक भाव से शिव की भक्ति में लीन रहते हैं। नाथ लोग अलख (अलक्ष) शब्द से शिव का ध्यान करते हैं। परस्पर 'आदेश' या आदीश शब्द से अभिवादन करते हैं। अलख और आदेश शब्द का अर्थ प्रणव या परम पुरुष होता है। जो नागा (दिगम्

🔥🔥 शत्रु दमन भैरव साधना🔥🔥

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🔥🔥 शत्रु दमन भैरव साधना🔥🔥 शत्रुओं से रक्षा एवं उनके शत्रु नाश के लिये यह साधना  उन साधकों को करना चाहिये जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष शत्रुबाधाओं का सामना कर रहे हों। इस हेतु शुभमुहूर्त में सवाकिलो बूंदी के लड्डू, नारियल, अगरबत्ती और लाल पुष्प की माला से भैरवजी का पूजन करें। पूजन से पहले सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करें, तत्पश्चात् अपना संकल्प बोलकर मंत्र की एक माला करें। यह प्रयोग प्रारम्भ करते हुए निरन्तर 21 दिनों तक करना है। इसके बाद प्रातःकाल 7 बार पढ़ना है। इस प्रयोग से जीवन में शत्रु का दमन होना शुरू हो जाएगा । 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 पड़ता है। प्रारंभ में जो पूजन सामग्री दी गई है, वह प्रथम और अन्तिम दिन भैरवजी को अर्पित करनी है। शेष दिनों में धूप-दीप करने के पश्चात् केवल मंत्रजप ही करना है।                     🌞 मंत्र 🌞 हमें जो सतावै, सुख न पावै सातों जन्म । इतनी अरज सुन लीजै, वीर भैरों आज तुम || जितने होंय सत्रु मेरे, और जो सताय मुझे । वाही को रक्तपान, स्वान को कराओ तुम || मार-मार खड्गन से, काट डारो माथ उनके। मास रक्त से नहावो, वीर भैरों तुम । कालका भवानी, सिंहवाहिनी

🔯🚩गुरु मँत्र क्यो आवश्यक है?🚩🔯

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🔯🚩गुरु मँत्र क्यो आवश्यक है?🚩🔯 क्या कारण है कि लोगों को मंत्र गुप्त रखने के लिए कहा जाता है? मंत्र दीक्षा का अर्थ है कि जब तुम समर्पण करते हो तो गुरु तुममें प्रवेश कर जाता है, वह तुम्हारे शरीर, मन, आत्मा में प्रविष्ट हो जाता है। गुरु तुम्हारे अंतस में जाकर तुम्हारे अनुकूल ध्वनि की खोज करेगा। वह तुम्हारा मंत्र होगा। और जब तुम उसका उच्चारण करोगे तो तुम एक भिन्न आयाम में एक भिन्न व्यक्ति होओगे। जब तक समर्पण नहीं होता, मंत्र नहीं दिया जा सकता है। मंत्र देने का अर्थ है कि गुरु ने तुममें प्रवेश किया है, गुरु ने तुम्हारी गहरी लयबद्धता को, तुम्हारे प्राणों के संगीत को अनुभव किया है। और फिर वह तुम्हें प्रतीक रूप में एक मंत्र देता है जो तुम्हारे अंतस के संगीत से मेल खाता हो। और जब तुम उस मंत्र का उच्चार करते हो तो तुम आंतरिक संगीत के जगत में प्रवेश कर जाते हो, तब आंतरिक लयबद्धता उपलब्ध होती है। मंत्र तो सिर्फ चाबी है। और चाबी तब तक नहीं दी जा सकती जब तक ताले को न जान लिया जाए। यही कारण है कि मंत्रों को गुप्त रखा जाता है। अगर तुम अपना मंत्र किसी और को बताते हो तो वह उसका प्रयोग कर सकता है । य

कितने लोग जानते हैं यह क्या है ? और इसके क्या लाभ हैं ?

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कितने लोग जानते हैं यह क्या है ? और इसके क्या लाभ हैं ? 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺   श्री विद्या के यंत्र को ‘श्रीयंत्र’ या ‘श्रीचक्र’ कहते हैं। ‘श्रीयंत्र’ भगवती त्रिपुर सुंदरी का यंत्र है। श्रीयंत्र को यंत्रराज, यंत्र शिरोमणि, षोडशी यंत्र व देवद्वार भी कहा गया है। श्रीयंत्र में देवी लक्ष्मी का वास माना जाता है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति तथा विकास का प्रतीक होने के साथ मानव शरीर का भी द्योतक है। श्री शब्द का अर्थ लक्ष्मी, सरस्वती, शोभा, संपदा, विभूति से किया जाता है। यह यंत्र श्री विद्या से संबंध रखता है। श्री विद्या का अर्थ साधक को लक्ष्मी़, संपदा, विद्या आदि हर प्रकार की ‘श्री’ देने वाली विद्या को कहा जाता है। श्री चक्र पराशक्ति का ब्रह्मांडीय उत्सर्जन है और पृथ्वी उनके उत्सर्जन में से एक है। दूसरे शब्दों में, श्री चक्र पराशक्ति का लौकिक रूप है। ऐसा कहा जाता है कि श्री चक्र में शिव और शक्ति दोनों की उपस्थिति का एहसास होना चाहिए। इसमें पाँच त्रिभुज होते हैं जो नीचे की ओर होते हैं, चार त्रिभुज ऊपर की ओर होते हैं। पांच अधोमुखी त्रिभुज स्त्री स्वरूपा हैं और चार ऊपर की ओर मु