श्री त्रिपुरसुंदरी कवच

🌹 1.. श्री त्रिपुरसुंदरी प्रात: स्मरण स्तोत्र हिन्दी पाठ
🌹2..श्री  त्रैलोक्य मोहन महात्रिपुरसुंदरी कवच 
          हिन्दी पाठ
🌹3.. श्री त्रिपुरसुंदरी कवच हिन्दी पाठ

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं क ऐ ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं
ॐ भगवति त्रिपुरसुंदरी मम सर्व कार्य सिद्धिम देही देही
      कामेश्वरि नमः
ॐ ह्रीं ऐं सर्व काम्य सिद्धि महात्रिपुरसुदर्यै फट्
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्रीत्रिपुरसुंदर्यै नमः

🌹🌹1..श्रीत्रिपुरसुन्दरी प्रातः स्मरणम् स्तोत्र🌹🌹🌹
        श्रीमदादिशंकराचार्य कृत स्तोत्र

 हिन्दी पाठ

जिनके नीले केश अत्यधिक मनोहर एवं कस्तूरी की दिव्य सुगन्ध से युक्त हैं, जो नवीन मोतियों के हार से सुशोभित हैं ऐसी भगवती श्रीललिता जो कमल के समान नेत्रों वाली हैं उनका मैं प्रातः काल में स्मरण करता हूँ।

जिनका चूड़ा अखण्ड पुण्य राशि से निर्मित है, जिनके शरीर की शोभा उत्तप्त स्वर्ण के सदृश है, जो देवी मुनियों व ऋषियों के मानस की राजहंसी हैं ऐसी परमेश्वरी श्रीललिता का मैं प्रातः काल में स्मरण करता हूँ ।

जो चतुरा है, साम्राज्य प्रदान करने वाली हैं, जिनके विशाल नेत्र हैं, जो कामना में वास करने वाली रसिका एवं रस सिद्धि प्रदान करने वाली हैं, ऐसी स्वामिनी भगवती श्रीललिता का मैं प्रातःकाल में स्मरण करता हूँ ।

जो लक्ष्मी, पद, पद्म एवं भुवन इन चारों के साथ सदाशिव रुपी फलक पर सुशोभित हो रही हैं, जो गद्दी पर सुखपूर्वक विराजमान हैं, ऐसी भगवती श्रीललिता का मैं प्रातः काल में स्मरण करता हूँ ।

जो ह्रीं मंत्र के जाप व होम से सन्तुष्ट होने वाली हैं, जो ह्रीं मंत्र के जल की सुन्दर राजहंसी हैं, ऐसी भगवती श्रीललिता का मैं प्रातःकाल में स्मरण करता हूँ ।

 जो लास्य नृत्य एवं कोमल गान एवं गीतों के रसों का पान करने वाली हैं, जो की राशि से युक्त हैं, जिनके कंधों पर विराजमान तोता भी सुन्दर एवं मनोहर शास्त्र को बोलने में निपुण है, ऐसी भगवती श्रीललिता का में प्रातःकाल में स्मरण करता है।

जो सम्पूर्ण लोकों का हित चाहने वाली हैं, जो सम्पत्ति प्रदान करने वाली है ●अधमुखी व देवों से समृद्ध हैं, जो सर्वपूज्या एवं कोमल तथा सुन्दर शरीर वाली हैं ऐसी भगवती श्रीललिता का मैं प्रातःकाल में स्मरण करता हूँ।

जिनका श्रीमुकूट अर्धचन्द्रमा से सुशोभित है, जिनका चूड़ा सुन्दर हैं, जो क्रीड़ा को पसन्द करने वाली हैं, जिनके पवित्र व दिव्य चरित्र का सभी गुणगान करते हैं, ऐसी भगवती श्रीललिता का मैं प्रातःकाल में स्मरण करता हूँ।

जो असुरों की मति ( बुद्धि) का हरण बलपूर्वक कर लेती हैं, जो भण्डासुर व चण्ड दैला का युद्ध में सेना के साथ विनाश करने वाली हैं तथा जो अपने भक्तों की अपने नेत्रों की अमृत कृपा दृष्टि से रक्षा करने वाली हैं, ऐसी भगवती श्रीललिता का मैं प्रातःकाल में स्मरण

जो लज्जा रूपीवन में भ्रमण करने वाली हैं, जो सुख रूपी चन्द्रमा के समान सुन्दर शोभा वाली हैं, जिनके सुन्दर नीले वर्ण वाले बालों का गुच्छा भ्रमरों के गुच्छे जैसा है, ऐसी भगवती श्रीललिता का मैं प्रातःकाल में स्मरण करता हूँ। 
जो ह्रीं कार स्वरूपा एवं हिमालय पर्वत जितनी विशाल पुण्य राशि से युक्त हैं, जो ह्रीमंत्र स्वरूपा हैं, सुन्दर एवं मनोहर हैं, जो ह्रींकार का जाप करने वाले साधकों को सिद्धि प्रदान करने वाली हैं, ऐसी भगवती श्रीललिता का मैं प्रातः काल में स्मरण करता हूँ। 

जिनके भय से जन्म मृत्यु अपना कार्य करते हैं, जो देवी पूर्णिमा की शुभ ज्योत्सना के सदृश हैं, जिनका चूड़ा अर्धचन्द्र से सुशोभित है, जिनकी अणिमादि अष्ट सिद्धियाँ बन्दना करती हैं ऐसी भगवती श्रीललिता का में प्रातःकाल में स्मरण करता हूँ।

जो कल्याण रूपी विग्रह शिखर शैल पर विहार करने वाली हैं, जो कामेश्वर शिव की गोद में सुन्दर स्वरूप में विराजित होती हैं, जो कादि मंत्र वर्ण वाली हैं, जो परम सम्मानीया एवं महानुभाव हैं, ऐसी भगवती श्री ललिता का मैं प्रातः काल में स्मरण करता हूँ।

जो लम्बोदर की जननी हैं, लाल होंठों वाली एवं चन्द्रमा के समान मुखवाली हैं एवं शिव प्रिया हैं, जिनके श्रीहस्त लावण्य के सम्पूर्ण समुद्र से उत्पन्न हो ऐसे हैं ऐसी भगवती श्रीललिता का मैं प्रातःकाल में स्मरण करता हूँ।

ह्रीं मंत्र स्वरूपा, शास्त्रों में जिन्हें ह्रींकार कहा है, जो ह्रीं कार से ही दानवों को पराजि करती हैं, जो ह्रीं से उत्पन्ना एवं ह्रीं से ही पूजा व सेवा जिनकी सदैव की जाती है ऐसी भगवती श्रीललिता का मैं प्रातःकाल में स्मरण करता हूँ।

श्रीचक्रराज में निवास करने वाली, कामधेनु स्वरूपा श्रीकामराज की जो जननी है, जो श्रीकुल की मंगल देवता हैं, उन भगवती श्रीललिता का मैं प्रातःकाल में स्मरण करता हूँ।
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2...🌹🌹.श्री त्रैलोक्यमोहन महात्रिपुरसुंदरी कवच  🌹      
                  🌹  हिन्दी पाठ🌹
          

श्री देवी बोले- श्रीमत् त्रिपुर सुन्दरी की जो जो विद्याएँ दुर्लभा थीं वह सभी आपने मुझे बताई एवं मैंने ग्रहण की, प्राणनाथ अब मन्त्रविग्रह कवच का कथन कीजिए जो त्रैलोक्य मोहन के नाम से विख्यात है, अभी मैं सर्वार्थ साधक उस कवच को सुनना चाहती हूँ।

ईश्वर बोले- हे देवि, सुन्दरी एवं प्राणवल्लभा, त्रैलोक्य मोहन यह कवच सभी विद्याओं का साक्षात् स्वरुप है जिसको धारण कर विष्णु बार-बार राक्षसों का वध करने में सफल हो पाए, ब्रह्मा भी इसी कवच को धारण कर सृष्टि सृजन करते हैं, रुद्र भी इसी कवच की शक्ति से संहार कर्म क पाते हैं, कुबेर धनाधिप इसी कवच के प्रभाव से बने हैं, अन्य देवता भी दिशाओं के स्वामी इस कवच की शक्ति से बने हैं। यह कवच अशिष्य, अभक्त एवं पुत्र को कदापि नहीं देना चाहिए, केवल भक्त एवं शिष्य को ही प्रदान करना चाहिए।

विनियोग- इस त्रिपुर सुन्दरी कवच के ऋषि शिव हैं, विराट् छन्द है, श्री त्रिपुर सुन्दरी देव धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति हेतु विनियोग है।

ॐ श्लीं पशुं हूं फट् इस मंत्र से दिग्बन्धन करें।

कवचम्

कएईलहीं (वाम्भव ) मेरे सिर की रक्षा करें।
 (कामेश्वरी) हसकलहीं मेरे ललाट की रक्षा करें।

हकहलह्रीं (कामेश्वरी) मेरे नेत्रों की सदैव रक्षा करें। कहएलहीं (तुरीयक) मेरे कर्णो की सदैव रक्षा करें। हकलसहीं (पञ्चमी) मेरी जिह्वा की रक्षा करें।

कएईलहीं हसकलहीं हकहलहीं कहएलह्रीं तथा हकलसहीं (पञ्चकूटा )मेरे मुख की रक्षा करें।
: कईलही (वाग्भव ) मेरी नाक की रक्षा करें।
 हसकहलही ( कामेश) मेरे कण्ठ की रक्षा करें।

सकलही (शक्तिकूटा ) मेरे कंधों की रक्षा करें। कएईलही इसकहलहीं सकलही (कामोपासिता ) मेरे कक्ष प्रदेश की सदा रक्षा करा क्लीं ह्रीं श्रीं ऐं सौः ॐ ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौ: श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः (कामादिषोडषी ) मेरी भुजाओं की रक्षा करें।

ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौः श्रीं ह्रीं क्लीं स्त्रीं ऐं क्रीं क्रीं श्रीं हुं (तारादिषोडषी ) मेरे मणिबन्ध की रक्षा करें। श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौः सौः ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं (रमादि षोडषी ) मेरे हाथोंकी रक्षा करें।

ह्रीं ह्सौ: ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौ: स्त्रीं क्रीं ऐं ह्रीं हूं हूं श्रीं (मायादि षोडषी) मेरे हृदय की रक्षा करें।

ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः ऐं क्लीं सौः सौः क्लीं ऐं सौः क्लीं श्रीं ह्रीं ऐं (वाग्वादिषोडषी) मेरे स्तनों की रक्षा करें।

कए श्रीं हसकलहीं क्लीं इसकहलहीं सौः सकल ही ( अपराजिता) मेरे पाश्र्व भाग की रक्षा करें।

ह्रीं हसौ: रहीं रहौं हसीं क्लीं इसकहलह्रीं ह्रीं ह्रीं सौः सौः हं हं सकहलहीं क्लीं इसौं सहाँ

ह्रीं रहौं हसौं ह्रीं महापुरुषपूजिता, महागुह्यस्वरुपा, केवलानन्द चिन्मयी मेरे कटि देश की सदैव रक्षा करें।

हसकलहीं (वाग्भवकूट) मेरे पृष्ठ की सदा रक्षा करें। हसकहलहीं (कामकूट ) मेरे कुक्षि की सदा रक्षा करें।

सकलहीं (शक्तकूट ) मेरे वक्षस्थल की सदा रक्षा करें।"
हसकलहीं हसकहलहीं सकल ह्रीं ( लोपामुद्रापञ्चदशी) मेरे मध्यदेश की रक्षा करें। 
कहएईलह्रीं नाभि की हकएईलहीं कटिदेश की तथा सकएईलहीं मेरी सदा रक्षा करें। 
कहएईह्रीं हकएईलह्रीं सकएईलहीं (मानवीविद्या) सदा सर्वतः मेरी रक्षा करें।

सहकएईलह्रीं मेरे ऊरु प्रदेश की सदैव रक्षा करें।

सहकहएईलह्रीं मेरे गुह्य प्रदेश की सदैव रक्षा करें।

हसकएईलह्रीं मेरे जानुप्रदेश की सदैव रक्षा करें। सहकएईलह्रीं सहकहएईलहीं हसकएईलहीं मेरी सदैव जल में तथा भय में रक्षा करें। 
हसक लहीं मेरे गुल्फ की रक्षा करें।
 हसकहएईलह्रीं मेरे पैरों की रक्षा करें। 
सहकएईलह्रीं मेरे प्रपदों की रक्षा करें।
हसक एईलह्मीं हसकहएईलह्मींं सहकएईलंह्मीं जो विद्या कुबेर द्धारा पूजिता हैं वह मेरे सभी अंगों की रक्षा करे

कएईलह्मीं त्रिपुरा मेरी पूर्व दिशा में रक्षा करे
हसकहल ह्मीं मेरी अग्निकोण में रक्षा करते हैं
सहसकलह्मीं दक्षिण दिशा में मेरी सदैव रक्षा करे
कएईलह्मीं  हसकहलह्मीं सहसकलह्मीं विद्या जो
 ऋषि अगस्त्य द्वारा उपासित है जो चक्रस्था वह विद्या मेरी सदा रक्षा करे
स एईलह्मीं मेरी नैऋत्य दिशा में रक्षा करे
सहकहलह्मीं मेरी प्रतीच्या कोण में रक्षा करे
सकलही मेरी वायव्य कोण में रक्षा करें
स एईल सहकहलह्मीं  सकलह्मीं विद्या जो नन्द आराधित है वो मेरे सभी अंगों की रक्षा करें

हसकलही वायव्य में, सहकलही उत्तर में सकहलही ईशान में तथा इसकलही सहकलही सकहलही जो सूर्यपूज्या विद्या है वह मेरी उर्ध्व दिशा में रक्षा करें। 
क एईलह्मीं हसकहलह्मीं   सकल ह्मीं  विद्या जो शक्र पूजिता है वह सदैव मेरी रक्षा करें।

कएईलही हकलही हसकलही ब्रह्माणी स्वरूपा श्रीमत् त्रिपुरसुन्दरी मेरी सदा रक्षा करें।

हसकलही इसकहलड़ीं सकलही तथा हसकलहसकहलसकलही शांकरी महाविद्या मेरी
पाताल में सदा रक्षा करें। 
हसकलही आधार में, इसकहलहीं लिंग की,
 सकलही नाभि की, सहकलहीं हृदय की, सहकहलही कण्ठ की, सहसकलही अन्तरीक्ष में सदा मेरी रक्षा करें।

हसकलहीं इसकहलहीं सकलहीं सहकलहीं सहकहलहीं सहसकलहीं (मनोभवा षट्कूटा) यह वैष्णवी विद्या सदा मेरी रक्षा करें।
कएईलही इसकहलही सकलहीं दुर्वासा पूजिता यह विद्या सभी दिशाओं में मेरी रक्षा करें। 
कहएईलहीं हलएईलहीं सकएईलहीं क्रोध के द्वारा पूजिता यह विद्या मेरी विदिशाओं में सदैव रक्षा करें।

हसकलहीं इसकहलहीं सकलहीं महाज्ञानमयी षोडषी विद्या मेरी सदा रक्षा करें। 
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः ॐ ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौः सौः ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं बीजरूपा षोडषी मेरे सभी अंगों की सदा रक्षा करें।

ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौः कएईलहीं इसकहलहीं सकलहीं स्त्रीं ऐं क्रों क्रीं ई हूं महादेवी श्री महाषोडषी, पूर्णा, प्रथिता, मृत्युनाशिनी, शिरस्था मेरी सदा रक्षा करें। यह महाषोडषी महादेव के द्वारा पूजिता है, जिसका ज्ञान होने पर मृत्यु की भी मृत्यु हो जाती है।

ऐं कएईलहीं क्लीं इसकहलहीं सौः सकलहीं सोहं हौं हंसः ह्रीं सकलहीं सौः इसकहलहीं
क्लीं कएईलह्मीं ऐं ब्रहमस्वरूपिणी अष्टदशाक्षरी विद्या जो परमानंद चिदघना सदैव मेरी रक्षा करें

फलश्रुति
 ईश्वर बोले
 ब्रह्मविद्या कललेवर वाला यह त्रैलोक्य मोहन कवच जो ब्रहमस्वरूप है इसका कथन हैं देवी मैंने आपसे कहा
यह कवच सात करोड़ महाविद्या के तन्त्रो में गोपित है
तथा यह सार का भी साथ है

है देवि और अधिक क्या कहूँ यह भी महायोडषीविद्या आपके पूछने पर प्रथम बार मैंने प्रकाशित की है, महाविद्या इसका सद्गुरु की विधिवत पूजा कर पाठ करनाचाहिए।

देवी की सम्पूर्ण अर्थनाकर 108 बार इस कवच का पाठ कर दशांश हवन करना चाहिए।
 इस कवच के प्रभाव से व्यक्ति पुण्यात्मा, कामदेव के समान सुन्दर तथा मंत्र सिद्धियों को प्राप्त करने वाला बन जाता है।

इस कवच का पाठ करने वाले व्यक्ति की वाणी में सरस्वती तथा घर में स्थिर लक्ष्मी निवास करती है, 
आठ पुष्पों को अंजलि में रखकर इस कवच का पाठ कर जो देवि को ये पुष्पांजलि अर्पित करता है वह दस हजार वर्षों तक की गई पूजा के पुण्य फलों को प्राप्त करता है, स्वयं में लय होकर इस कवच का पाठ करना चाहिए।

इस कवच को भोजपत्र पर लिखकर स्वर्ण में धारण किया जायें, तो धारक जिस जिस व्यक्ति को देखता है वह सभी व्यक्ति दास की तरह शीघ्र ही उसके वश में हो जाते हैं। कण्ठ व बाहु में इस कवच को धारण करने वाला त्रिलोक को दास बना देता है तथा त्रिलोक विजयी बनता है।

कवच धारक साधक के उपर चलाए जाने वाले अस्त्र शस्त्र हे पार्वती कुछ भी अहित नहीं कर पाते हैं और पुष्प स्पर्श की तरह वे सभी अस्त्र सुख पहुँचाते हैं, इस कवच को जाने बिना त्रिपुर सुन्दरी को पूजने वाला साधक नवलाख मंत्रों का भी जाप कर ले फिर भी उसे विद्या सिद्ध नहीं होती है, साथ ऐसा व्यक्ति (कवच को नहीं जानने वाला) शस्त्रघात से पीड़ित होता है और अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है। यह कवच भोग व मोक्ष दोनों को प्रदान करने वाला है अतः प्रयत्नपूर्वक इसका पाठ करना चाहिए। त्रिवृतों व षोडष नाग आदि के साथ अग्नि कोण के बिन्दु के मध्य सिंहासन पर विराजमान उल्लासित नेत्रों वाली उस भगवती श्रीत्रिपुरा का मैं भजन करता हूँ उस परमेश्वरी को मेरा कोटि कोटि नमन।
दस महाविद्या की साधना करने वाले साधक के लिए यह कवच आवश्यक है

     इति श्री त्रैलोक्य मोहन महात्रिपुर सुंदरी कवच
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3...🌹🌹..श्री त्रिपुरसुंदरी कवच हिन्दी पाठ🌹🌹

 ईश्वर बोले- हे देवि मैं आपसे श्रीत्रिपुर सुन्दरी के अति रहस्यमय हूँ आप इस मन्त्रस्वरूप कवच को सुनिए।
 श्रीपार्वती बोले- हे भगवान् आप सभी लोकों के स्वामी तथा सर्वपूज्य हो आप मुझे इस गुह्यतम् कवच को तत्वतः स्पष्ट कीजिए। 

विनियोग- इस महात्रिपुर सुन्दरी कवच के श्रीदक्षिणामूर्ति ऋषि: हैं, अनुष्टुप छन्द श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी देवता है, ऐं क बीज है, क्लीं ह कीलक है, सौः सः शक्ति है, सभी अभीष्टों की प्राप्ति हेतु इस कवच पाठ का विनियोग है।

 ध्यानम्- 
कुंकुम के विलेपन व मन्द हास्य से युक्ता देवी जिन्होंने बाण, चाप, अंकुश,  धारण कर रखे हैं, जिन्होंने अरुण वर्ण के वस्त्र धारण किये हुए हैं, जो सभी को वशीभूत व
वाली हैं, चतुर्भुजा हैं, उन्नत स्तनों वाली इक्षु धनुष के साथ बाण, पाश व अंकुश इन आयुधों  से सम्पन्ना उन जगतमाता को मैं नमन करता हूँ।

 कवचम्-
 ककार मेरे सिर की तथा एकार मेरे भाल देश (ललाट) की रक्षा करें, ई मुख की तथा लकार मेरे कूर्प युग्म की सदा रक्षा करें।

ह्रींकार मेरे हृदय की तथा वाग्भव सदा मेरी रक्षा करें, हकार मेरे जठर की तथा स नाभि की रक्षा करें।

ककार मेरे पार्श्वभाग की तथा हकार मेरे पृष्ठभाग की रक्षा करें, लकार मेरे नितम्बो की एवं ह्मींकार मेरे मूल की सदा रक्षा करें।

कामराज सदा मेरे जठरप्रदेश की एवं सकार मेरे कटिप्रदेश की तथा ककार  मेरे लिंग की रक्षा करें। 
लकार मेरे जानु की एवं ह्रींकार मेरी जंघाओं की सदा रक्षा करें, शक्ति बीज एवं मूल विद्या  दोनो मेरी सदैव रक्षा करें

त्रिपुरा, त्रिपुरेशी, त्रिपुरा सुन्दरी एवं वसु पात्र देवता ये सभी सदा मेरी रक्षा त्रिपुरावासिनी, श्रीत्रिपुरा, त्रिपुरामालिनी एवं त्रिपुरा सिद्धिदा सदैव ये शक्तियाँ मेरी रक्षा करें

श्रीत्रिपुरा, त्रिपुराभैरवी, अणिमा आदि अष्ट सिद्धियाँ सभी सदा मेरी रक्षा करें। कामकर्षिणी तथा षोडषार में स्थिता अनंगकुसुमादि शक्तियाँ सदैव मेरी रक्षा करें । 
अष्टपत्रों में सर्वसंक्षोभणादि तथा चक्र के कोणों में सर्वसिद्धि प्रदायिका मेरी सदा मेरी रक्षा करें
बाह्य एवं मध्यकोणों में सर्वज्ञा तथा सर्वाभीष्ट प्रपुरिका मेरी सदा रक्षा करें। •
 वसुषत्र की देवता वशिन्यादि मेरी सदा रक्षा करें तथा त्रिकोण के अन्तराल में आयुध मेरी सदैव रक्षा करें

 त्रिकोण के कोणों में स्थिता कामेश्वर्यादि शक्तियाँ सदा मेरी रक्षा करें तथा बिन्दुचक्र में भगवती श्रीत्रिपुरसुन्दरी मेरी सदैव मेरी रक्षा करें । 
इस कवच का नित्य त्रिकाल सन्ध्या में पाठ करने पर यह सर्वसिद्धियों को प्र तथा सभी अभीष्टों को पूर्ण करता
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Aacharya Goldie Madan
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