अबोध बच्चे बड़े प्यारे लगते यहाँ ज्यादा जो आकर्षित करता वो होता आभामंडल ,उनकी ऊर्जा जिसे तेजोवलय ओर ओरा भी कहते इंग्लिश में

अबोध बच्चे बड़े प्यारे लगते यहाँ  ज्यादा जो आकर्षित करता वो होता आभामंडल ,उनकी ऊर्जा जिसे तेजोवलय ओर ओरा भी कहते इंग्लिश में । 

यह सम्पूर्ण संसार ऊर्जा से ही निर्मित है । बिना ऊर्जा के इस दुनियाँ में किसी भी चीज का अस्तित्व हो ही नही सकता । 

फिर वह चाहे इंसान हो , सजीव चल या अचल वस्तु, प्राणी हो या निर्जीव स्थिर वस्तु , हर एक पदार्थ में ऊर्जा होना उसकी मौजूदगी को दर्शाता है।

देवी या देवताओं के चित्रों में पीछे जो गोलाकार प्रकाश दिखाई देता है हम उसकी बात कर रहे।

ओरा सजीव व्यक्तियों से लेकर निर्जीव व्यक्ति, वस्तुओं का भी हो सकता है। धरती का आभामंडल है।

 आपने चंद्रमा के आसपास प्रकाश देखा ही होगा। यही उसका आभामंडल है जो ध्यान से देखने पर दूर तक गोल दिखाई देता है।

यह ऊर्जा हर किसी में उसके आचार विचार के अनुसार होती है, तथा उनके शरीर के आकार का ही ऊर्जामय घेरा या वलय होता है ।

जिसे सामान्य आंखो से सब नहीं देख सकते  किंतु औरा डिटेक्टर से इसकी फोटोग्राफी कराई जा सकती है।

चाहे मनुष्य हो या अन्य कोई भी जीव हो, हर किसी का अपना औरा होता है। यह औरा विभिन्न रंगों की किरणों के साथ मनुष्य के आसपास चक्रिय आकार में घूमता है। 

जिस तरह आपका मन आपके शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है, उसी तरह से आपका शरीर भी आपके मन को एनर्जी देता है।

 यही कारण है कि कई बार लोग काफी खुश प्रतीत होते हैं। उनके चारो ओर का वातावरण खुशनुमा लगता है। 

इसे आप उनका “औरा” भी कह सकते हैं। केवल मनुष्य ही क्यों, बल्कि अन्य जीव जंतुओं के पास भी एक सूक्ष्म शरीर होता है जो उनके आभामण्डल को   परिभाषित करता है।

कोई साधक जब दीर्घकाल तक ध्यान या अन्य कोई साधना करता है उसका आभामंडल धीरे धीरे कुछ सेंटीमीटर बढ़ता जाता है।

 और साधना की अवधि बढ़ने पर कई कई किलोमीटर तक भी फैल जाता है। 

जिनका आभामंडल जितना ज्यादा बड़ा तथा गहरा स्वच्छ सफेद होता है, वह इंसान अपनी इच्छा शक्ति के बल पर दुनिया का कोई भी बड़ा से बड़ा कार्य आसानी से कर पाने में सक्षम बन जाता है।

आभामंडल की ऊर्जा का संबंध मनुष्य के कर्मों से होता है।

 सकारात्मक वातावरण, सत्संग, हवन, मंत्र उच्चारण, ध्यान, भजन
और धार्मिक स्थानों के सानिध्य में मनुष्य का आभामंडल विस्तृत होता है। 

इसके विपरीत नकारात्मक संग, भोजन, संगीत,साहित्य पढ़ना आदि आभामंडल को घटाता है।

 इसलिए यह विशेष ध्यान देना चाहिए कि हम अपना समय कैसे सानिध्य अथवा,संग में व्यतीत करते हैं ।

कैसे लोगों के संबंध में अधिक रहते हैं। जिन लोगों का ओरा अपने विचार और कर्मों के द्वारा नकारात्मक हो चला है उसके पास बैठने या उनसे मिलने की भी व्यक्ति  की इच्छा नहीं होती है।

 हम खुद अनुभव करते हैं कि कुछ लोगों से मिलकर हमें आत्मिक शांति का अनुभव होता है तो कुछ से मिलकर उनसे जल्दी से छुटकारा पाने का दिल करता है, क्योंकि उनमें बहुत ज्यादा नकारात्मक ऊर्जा होती है।

 अक्सर अपराधियों और कुविचारों के लोगों का ओरा नकारात्मक अर्थात काला, धुंधला, गहरा नीले या कपोत रंग का होता है। 

बहुत ज्यादा गहरा लाल रंग भी नकारात्मक होता है। 

 मनुष्य के शरीर में विद्यमान सात चक्र होते हैं जो क्रमश: इस प्रकार हैं।

1.मूलाधार चक्र, 2.स्वाधिष्ठान चक्र, 3.मणिपुर चक्र, 4.अनाहत चक्र, 5.विशुद्ध चक्र 6.आज्ञा चक्र, 7.सहस्त्र चक्र आदि। इन्ही सातों चक्रों से आभामंडल का निर्माण होता हैं ।

आभामंडल का निर्माण मानसिक, शारीरिक व भावनात्मक शृंखलाओं के योग से होता है।

 मनुष्य के सातों चक्रों से सकारात्मक ऊर्जा प्रकट होती है तो वह उक्त व्यक्ति का आभामंडल ,ओरा कहलाता है।

 यदि सातों चक्रों से नकारात्मक ऊर्जा प्रकट होती है तो वह निष्प्रभ मंडल कहलाता है । 

आभा मण्डल सीधा अपने कर्मो से जु़डा रहता है। काम-क्रोध, मोह-माया, झूठ आदि जो मानव स्वभाव की प्रकृति के विपरीत हैं, उनमें संलग्न होने से आभा मण्डल क्षीण हो जाता है।

 एक साधारण स्वस्थ इंसान जिसका आभा मण्डल 2.8 से 3 मीटर तक माना जाता है, इससे भी नीचे जाने लगता है तब मानसिक एवं भौतिक तौर पर बीमार होकर मृत्यु की तरफ बढ़ता रहता है।

तब मृत्यु पर ऑरा 0.9 मीटर जो मिट्टी या पंचभूत की अवस्था में पहुंच जाता है। 

आभा मण्डल के विकास के लिए हम धार्मिक स्थानों पर नियमित पूजा-पाठ, मन्त्रोच्चार, सत्संग आदि से सकारात्मक होते जाते हैं एवं जीवन में गुणात्मक परिवर्तन आने लगता है। 

वहीं गलत साहित्य, आधुनिक तथाकथित कल्चर का नकरात्मक  वातावरण,विचार,विपरीत आहार आदि सब आपके आभा मण्डल का ह्रास करते हैं इसलिए यह घटता-बढ़ता रहता है।

अगर आप अपना आभा मण्डल विकसित करते हैं तो सही समय पर सही निर्णय लेकर सही सलाहकार ढूंढ लेंगे एवं सही राय से आप सही दिशा में कार्य करेंगे।

हर इंसान का अपना एक औरा होता है किंतु उसमें उस इंसान के कर्म व्यवहार के अनुरूप रंग आ जाते है । 

जैसे साधु का सफेद या हल्के रंग का औरा चोर डकैतों का काले रंग का औरा, जब कोई साधक ध्यान या अन्य किसी साधना के मार्ग पर होता है।

 तो उसका आभामंडल गहरे रंग से हल्का होते हुए सफेद रंग की तरफ बढ़ने लगता है , क्योंकि उनके मनोविकारों में साधना से कमी आने लगती है।

यदि आपका आभामंडल सही है तो सबकुछ सही होगा। आपका भाग्य, आपके ग्रह-नक्षत्र और आपका भविष्य सभी सुधर जाएंगे।

जीवन के हर क्षेत्र में वे ही लोग ज्यादा प्रगति करते हैं जिनका आभामंडल शुद्ध और सशक्त होता है।

शास्त्रों के अनुरूप एक साधारण व्यक्ति का आभामंडल 2 से 3 फीट तो महापुरुषों व संतों का आभामंडल 30 से 60 मीटर तक का होता है। 

जो साधना, तप, ध्यान इत्यादि पर निर्भर करता है तथा इनके घटने और बढ़ने पर आभामंडल भी घटता और बढ़ता है। इसे आध्यात्मिक ऊर्जा मंडल भी कहते हैं। 

आभामंडल को निस्तेज करने वाले तत्व: काम ,क्रोध, मोह ,अहंकार, मद और दुर्व्यसन आदि हैं। 

इनकी अधिकता से शरीर में नकारात्मक ऊर्जा की उत्पत्ति होती है।

 तथा शरीर में प्रकट होने वाला आभामंडल निष्प्रभ मंडल में परिवर्तित हो जाता है। स्वयं के आभामंडल को बढाने के  लिए सदैव सकारात्मकता प्रदान करने वाले व्यक्त्वि व साहित्य को प्रबुद्धता दें। 

ओजस्वी, तेजस्वी व बुद्धिमान लोगों के संपर्क में समय व्यतीत करें। घर दफ्तर में पेड़ पौधों का रोपण करें। प्रकाश की व्यवस्था ठीक रखेंं। स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।

 घरों में हवन, मंत्रोच्चारण ,दीप प्रकाश, शंखनाद आदि करते रहें। पांच तत्वों की शुद्धि का सदैव ध्यान दिया जाना चाहिए… जल, अग्नि, वायु ,पृथ्वी तथा आकाश। इनसे संबंधित प्रदूषण करने से बचना चाहिए।

काम, क्रोध, मोह, लोभ, मद, अहंकार छः मनुष्य के शत्रु हैं। व्यक्ति द्वारा इन छः कर्मों में संलग्न होने से आभामण्डल क्षीण या कम होता जाता है। 

हम निरंतर एक दूसरे को भला बुरा कहते रहते है। एक दूसरे को डाँटते-फटकारते रहते है। 

निरंतर अपने नकारात्‍मक भाव व विचार क्रोध-आक्रोश भय चिंता,विवशता आदि-आदि दूसरों को संप्रेषित करते रहते है। 

 आभामण्डल की ऊर्जा तरंगं टूट जाती है तथा आभामण्डल के कमजोर होते ही व्यक्ति में सोचने-समझने की शक्ति भी क्षीण हो जाती है ।

 प्रायः जब हम बच्चे होते हैं तो हमारी “औरा” अर्थात आभामण्डल भरपूर होता है ।

पर जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं अनाप-शनाप खानपान, हमारी बुरी आदतें, भौतिक सुख-सुविधा के साधन जैसे- मोबाईल, इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रो निक्स साधन की चीजें जो एक नकारात्मक शक्ति  कर विकिरण पैदा करती हैं, ।

मोबाईल, फ्रीज, एसी, टी.वी., कंप्यूटर आदि से एक प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा निकलती है जो धीरे-धीरे हमारे शरीर व मन-मस्तिष्क को छतिग्रस्त करती रहती हैं ।

तथा हमारी प्राकृतिक “औरा” आभामण्डल को आहिस्ता-आहिस्ता समाप्त कर देती है। 

इनके अलावा एक और बड़ी नकारात्मक शक्ति भी है जो हमारी इस प्राकृतिक ऊर्जा को तेजी से छतिग्रस्त करने में प्रभावी है ।

वह है जियोपैथीक स्ट्रेस यह धरती के गर्भ से आने वाला एक ऐसा नुकसानदायक रेडिएशन है जिसकी उत्पत्ति का कारण भूगर्भ में धरती की चट्टानों के खिसकने, पानी के भूमिगत स्रोत के बहाव से उत्पन्न ऊर्जा है ।

जो दाब के करण दूषित हो जाती है अथवा भूमिगत जल के बड़े स्रोत या ऐसे कई अन्य कारण हो सकते हैं। 

इस नकारात्मक ऊर्जा का बहाव अगर हमारे घर मे हमारे सोने के स्थान से होकर गुजरता है तो धीरे-धीरे हमारी सकारात्मक ऊर्जा को दूषित कर हमारी औरा को समाप्त कर देता है। 

और हम बीमार, चिड़चिडेपन एवं अवसाद में घिर जाते हैं।

जिन घरों में चीटियां ज्यादा दिखाई देती हैं, बिल्लियों का ज्यादा आना जाना रहता है।

 मधुमक्खी के छत्ते व दीमक पाई जाती है इसे साधारण भाषा मे कहा जाए तो ऐसे घर के नीचे से जियोपैथीक लाइन गुजर रही होती है अथवा वहां पर इस तरह की दो लाइने एक दूसरे को काटती हैं। 

अर्थात इनका चार रास्ता बनता है। यह घर के साथ-साथ ऑफिस ,दुकान, फैक्ट्री में भी यह नकारात्मक ऊर्जा लाइन हो सकती है ।

जो कैस काउंटर के नीचे से, प्रबंधक अथवा किसी भी कार्यरत व्यक्तिके बैठने के स्थान के नीचे से, फैक्ट्री में महत्वपूर्ण मशीनों के नीचे से गुजरती हो तो वहाँ पे भयंकर मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। 

व्यक्ति अपना कार्य उचित ढंग से न कर पायेगा, मशीने ज्यादातर खराब ही पड़ी रहेंगी। अतः ऐसी नकारात्मक ऊर्जा की जांच किसी कुशल भूगर्भ विज्ञानी वास्तुशास्त्री से करवानी चाहिए ।

और इसका उचित परिशोध करवाना चाहिए। जिससे व्यक्ति अथवा स्थान को शुभ ऊर्जा से परिपूर्ण किया जा सके। 

इस नकारात्मक शक्ति नेगेटिव एनर्जी अर्थात जियोपैथीक स्ट्रेश की जांच आज के युग मे हमारे वैज्ञानिकों ने आसान कर दी है। 

 उन्होंने “औरा स्कैनर” नामक एक आधुनिक यंत्र ईजाद कर लिया है जिसकी सहायता से  प्रामाणिक रूप से वस्तु एवं व्यक्ति का आभामण्डल जांच सकते हैं।  

 आपने अक्सर देखा होगा कि अखाड़े के बाबा या नागा बाबा धूना लगाते हैं या धूनी लगाकर तापते हैं। इससे ओरा ठीक और शुद्ध होता है। 

यह आभामंडल को भौतिक रूप से ठीक करने की प्रक्रिया है। आप आग के सामने पीठ करके बैठें और बहुत थोड़े समय के लिए तापें। ऐसा कम से कम 43 दिन तक करें।  

प्रतिदिन उचित स्‍थान और वातावरण पर आसन लगाकर पन्द्रह मिनट के लिए ध्यान करे । 

 यदि आपका घर नकारात्मक दिशा में है या घर में नकारात्मक वस्तुएं हैं तो इस समस्या को दूर करके घर का रंग-रोगन बदलें।  घर को पूर्णत: वास्तु अनुसार बनाएं और सजाएं।

आभामंडल को सामान्यतौर पर पहचाना नही जा सकता । इसे देखने के लिए आपके अंदर एक खास तरह की क्षमता होनी चाहिए ।

या फिर आपने उस क्षमता निर्माण किया हो वरना हम ऊर्जा के इस खेल को आसानी से नही समझ सकते, परंतु आज जब विज्ञान भी इसे स्वीकार करता है।

 और उनके द्वारा औरा डिटेक्टर  मशीन विकसित की गई है जिससे हम अपने औरा की फोटोग्राफी करा सकते हैं।

जब हम अपने औरा की फोटोग्राफी देखते हैं तो शरीर से लिपटा हुआ एक ऊर्जा का वलय देखते हैं।

इन अलग अलग रंगों का अपना महत्व तथा अर्थ भी अलग अलग होता है। जैसा रंग औरा का होता है वह उस प्रवृति का इंसान होता है। 

जैसी जिसकी प्रवृत्ति होती है वैसा ही उसके आभामंडल का रंग नियत होता है।

जैसे :-लाल रंग का आभामंडल हो तो गुस्सैल, चिड़चिड़े स्वभाव का इंसान।

काले रंग का आभामंडल तो चोर, गुनाहगार स्वभाव का व्यक्ति।इन रंगों से उस इंसान या हर चीज की प्रवृत्ति या प्रकृति के बारे में जाना जा सकता है।

आभामंडल को देखने की क्षमता पाना भी लगभग आसान है। बस आपके अंदर उसे पाने का जुनून होना चाहिए। 

जब तक आप उस क्षमता को नही पा लेते तब तक इसको पहचान पाना कठिन कार्य होता है।

यह औरा विभिन्न रंगों की किरणों के साथ मनुष्य के आसपास चक्रिय आकार में घूमता है। आभामण्डल आपके आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डालता है।

लेकिन इसका जवाब आभामण्डल में मौजूद रंगों द्वारा मिलता है। जिससे आप ना केवल अपने बल्कि किसी और के चरित्र को भी पहचान सकते हैं।

आप कैसे खुद के आभामण्डल को जान सकते हैं इसके लिए इसका सही ज्ञान होना आवश्यक है। 

यदि आप अपने आभामण्डल को पहचान पाएंगे तो आप किसी के भी आभामण्डल को विस्तारित करने के योग्य होंगे। 

हमारे औरा में मौजूद रंग ही उस आभामण्डल को परिभाषित करते हैं,लेकिन वहीं दूसरी ओर यदि किसी का आभामण्डल केवल एक या दो रंगों को ही दर्शाता है तो इसका तात्पर्य है कि उसका जीवन केवल कुछ ही विषयों के आसपास घूम रहा है।

 रंग हमारे आभामण्डल को परिभाषित करते हैं।

यदि आपको आभामण्डल का रंग लाल या गहरा प्रतीत हो है तो इसका मतलब है कि वह इंसान बहुत जल्दी क्रोधित हो जाता है।

 ऐसे इंसान जब गुस्से में होते हैं तो वे नहीं जानते कि वे क्या बोल रहे हैं। इनके गुस्से की कोई सीमा नहीं होती।

  जिस व्यक्ति के आभामण्डल में पीले रंग का आभास हो उनका मस्तिष्क काफी सचेत रहता है, लेकिन यदि यही पीला रंग गहरा हो जाए तो यह अच्छा संकेत नहीं है।

 आभामण्डल में यदि हरा रंग दिखाई दे तो ऐसा इंसान काफी शांत स्वभाव का होता है। 

एक बाग में दिखने वाली हरियाली की तरह ही ऐसे इंसान के चेहरे पर आप संतुष्टि देख सकते हैं।

काले आभामण्डल यानी कि परेशानियां इनके जीवन का एक विशेष भाग बनकर बैठी हैं। 

माना जाता है कि काले आभामण्डल वाले लोग ही नशीले पदर्थों का सबसे ज्यादा सेवन करते हैं। 

यदि किसी इंसान के आभामण्डल में नीले रंग की छाया नज़र आए तो यह सबसे अच्छा रंग माना जाता है।

ऐसे व्यक्ति बेहद उत्साहित एवं कुशल स्वभाव के होते हैं। लेकिन बाकी रंगों की तरह ही यदि इस रंग पर भी काला या मटमैला रंग आ जाए, तो यह व्यक्ति को चिंता में डाल देता है। 

उसका उत्साह अति उत्साह बनकर उसी के जीवन को ग्रस्त करने में लग जाता है। 

लेकिन यदि आपका आभामण्डल आपको बुरा प्रतीत होता है तो आप स्वयं उसका हल भी निकाल सकते हैं।

Aacharya Goldie Madan
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