व्यापार वृद्धिकारक तन्त्र-बन्धन मुक्ति प्रयोग

व्यापार वृद्धिकारक तन्त्र-बन्धन मुक्ति प्रयोग


          

          जिस प्रकार देवता हैं तो दानव भी हैं, अच्छाई है तो बुराई भी है, मनुष्य हैं तो राक्षस भी हैं, प्रत्यक्ष है तो अप्रत्यक्ष भी है, उसी प्रकार षटकर्मों अर्थात आकर्षण, वशीकरण, उच्चाटन, स्तम्भन, विद्वेषण और मारण आदि में अच्छे कर्म भी हैं तो बुरे भी, जिन्हें मनुष्य अपने स्वार्थ हेतु उपयोग में लाता है और अच्छे-बुरे की सीमा को भी लाँघ जाता है। इन षटकर्मों में स्तम्भन ही बन्धन है। इसका प्रयोग कर किसी की शक्ति, कार्य, व्यापार, प्रगति आदि को कुण्ठित या अवरुद्ध कर दिया जाता है।

          साधारण शब्दों में बन्धन का अर्थ है बाँध देना। प्रत्यक्ष तौर पर बाँध देने की क्रिया को बाँधना कहते हैं, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से बाँधना बन्धन कहलाता है। अधिकतर लोगों को ऐसा लगता है कि बन्धन की क्रिया केवल तान्त्रिक ही कर सकते हैं और यह तन्त्र से सम्बन्धित है, परन्तु वास्तविकता इसके विपरीत है। किसी कार्य विशेष के मार्ग को अभिचार क्रिया से अवरुद्ध कर देना ही बन्धन है।

          कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि जिस प्रकार रस्सी से बाँध देने से व्यक्ति असहाय होकर कुछ कर नहीं पाता, ठीक उसी प्रकार किसी व्यक्ति, घर, परिवार, व्यापार आदि को तन्त्र-मन्त्र आदि द्वारा अदृश्य रूप से बाँध दिया जाए तो उसे ऐसा लगता है कि उसकी प्रगति रुक गई है और घर-परिवार संकटों से घिर गया है। गृहकलह, व्यापार-नुकसान, तालेबन्दी, नौकरी का छूट जाना आदि ऐसा कई संकट हो सकते हैं।

          बहुत से लोग खुद को बँधा-बँधा महसूस करते हैं। कुछ लोग किसी के दबाव में रहते हैं और कुछ किसी के प्रभाव में। कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि इतना कर्म करने के बाद भी कोई परिणाम नहीं मिल रहा है। उन्हें ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने प्रगति को बाँध रखा है। कुछ लोग जेल में नहीं है, फिर भी किसी न किसी बन्धन में रहते हैं। कुछ लोगों पर कोर्ट में मुकदमा चल रहा है तो कुछ पर कर्ज का बन्धन है। ऐसे में जिन्दगी ऐसी लगती है, जैसे किसी ने बाँधकर पटक दिया हो। कहीं से भी कोई रास्ता नजर नहीं आता।

          व्यापार अथवा कार्य बन्धन किसी व्यक्ति विशेष के व्यापार, दुकान, फैक्ट्री या व्यापारिक स्थल को बाँधना व्यापार बन्धन अथवा कार्य बन्धन कहलाता है। इससे उस व्यापारी का व्यापार चैपट हो जाता है। ग्राहक उसकी दुकान पर नहीं चढ़ते और शनैः शनैः वह व्यक्ति अपने काम धंधे से हाथ धो बैठता है।

          व्यापार-बन्धन एक ऐसी समस्या है, जो यदि किसी व्यापारी के साथ कर दी जाए तो उसे भारी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, अत्यधिक आर्थिक हानि उठाना पड़ जाती है, उसका सारा व्यापार चौपट हो जाता है और उसे अपना सम्पूर्ण भविष्य अन्धकारमय नज़र आने लगता है।

          इस समस्या से मुक्ति के लिए और व्यापार वृद्धि के लिए एक साबर मन्त्र साधना प्रयोग दिया जा रहा है। वैसे तो यह प्रयोग दीपावली की रात्रि में एक बार करने से ही पूर्ण फल देता है, परन्तु यदि आपने इस मन्त्र का जाप लगातार ४३ दिन तक सम्पन्न कर लिया तो फिर आपका व्यवसाय ऐसी गति आगे बढ़ेगा, जिसकी आपको उम्मीद ही न होगी। साथ ही भविष्य में आपके व्यापार पर कोई तान्त्रिक क्रिया भी कार्य ही नहीं करेगी।

साधना विधान :----------

          इसके लिए साधक को चाहिए कि वह दीपावली से एक दिन पहले किसी ऐसे वट वृक्ष की खोज कर लें, जो कि न तो किसी शिव मन्दिर के प्रांगण में स्थित हो और न ही किसी श्मशान में हो।

          जब ऐसा वट वृक्ष मिल जाए, तब धूप-दीप, अगरबत्ती, रोली या कुमकुम, दुग्ध व थोड़ा-सा गुड़ के साथ काली उड़द, सरसों तथा अक्षत (चावल) अपने साथ लेकर वहाँ जाएं। उस वट वृक्ष के समीप जाकर थोड़े-सी सरसों, काले उड़द तथा अक्षत हाथ में लेकर निम्नलिखित मन्त्र का तीन बार उच्चारण करें -----

ॐ वेतालाश्च पिशाचाश्च राक्षसाश्च सरीसृपाः।
    अपसर्पन्तु ते सर्वे वृक्षादिस्माच्छिवाज्ञया॥

          फिर सरसों, उड़द व अक्षत के मिश्रण को वृक्ष के चारों ओर बिखेर दें।

          इसके बाद वृक्ष के मूल में धूप-अगरबत्ती और शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर पूजा करें। फिर रोली (कुमकुम), अक्षत तथा एक सिक्का वहाँ रख करके वृक्ष को निमन्त्रण देते हुए कहें कि हे! वृक्षराजमैं कल प्रातः आपके पत्रों (पत्तों) को लेने आऊँगा। मैं इस समय आपको निमन्त्रण देता हूँआपके द्वारा प्रदान किए गए पत्र (पत्ते) मेरे सारे कार्य सिद्ध करें तथा मुझे बल देंआयु दें और सर्व सिद्धि दें। कृपया मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करें।

          यह कहकर दूध एवं प्रसाद (गुड़) अर्पित कर दें। इसके बाद साधक वृक्ष देवता को प्रणाम करके घर वापिस
 आ जाएं।

          अगले दिन अर्थात दीपावली को प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण कर पुनः वृक्ष के निकट जाए और वृक्ष देवता को प्रणाम करके निम्न मन्त्र का उच्चारण करें -----

ॐ नमस्ते अमृत सम्भूते बल वीर्य विवर्द्धिनी।
     बलं आयुश्च मे देहि पापान्मे त्राहि दूरतः॥

          इसके बाद पुनः धूप-दीप अर्पित करें। फिर वृक्ष देवता से पत्र (पत्ते) लेने की अनुमति लेकर ६ (छः) पत्ते तोड़कर ले आएं। घर वापिस आते समय सारे रास्ते निम्न मन्त्र का जाप करते रहें -----

॥ ॐ नमो भैरवाय महासिद्धि प्रदायकाय आपदुत्तरणाय हुं फट् ॥

          घर आकर उन पत्तों को पहले गंगाजल से धोकर शुद्ध कर लें। फिर केसर एवं पीले चन्दन में गंगाजल मिलाकर स्याही बनाएं। फिर अनार की कलम से पत्तों पर निम्न मन्त्र लिखें और माँ भगवती लक्ष्मी की तस्वीर के समक्ष रख दें।

          इसके बाद साधक पूजन आरम्भ करने से पहले कुछ पीली सरसों निम्न मन्त्र को पाँच बार पढ़कर अभिमन्त्रित कर लें एवं पूजा कक्ष में चारों ओर बिखेर दें और पूजन आरम्भ कर दें।

॥ हूं हूं ह्रीं ह्रीं कालिके घोरदंष्ट्रे प्रचण्ड  चण्डनायिके  दानवान दारय हन हन शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हूं फट् ॥

          फिर साधक सर्वप्रथम सामान्य गुरुपूजन करे और गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करे। इसके बाद साधक सदगुरुदेवजी से व्यापार वृद्धि एवं तन्त्र-बन्धन मुक्ति साबर साधना सम्पन्न करने की अनुमति ले और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          फिर साधक भगवान गणपतिजी का सामान्य पूजन करे और ॐ वक्रतुण्डाय हुम्” मन्त्र का एक माला जाप करे। तत्पश्चात साधक भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          फिर साधक संक्षिप्त भैरवपूजन सम्पन्न करे और  ॐ भं भैरवाय नमः” मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। फिर पुनः प्रतिदिन संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं होती है।

          फिर साधक माँ भगवती लक्ष्मीजी का यथाशक्ति षोडशोपचार अथवा पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें। साथ ही वटवृक्ष के पत्तों का भी पूजन करें।

          जब दीपावली पूजन हो जाए तो साधक पूर्व अथवा पश्चिम (जिस ओर आपने दीपावली की पूजन किया है) की ओर मुख कर लाल अथवा गुलाबी आसन पर बैठकर रुद्राक्ष, लाल चन्दन अथवा मूँगे की माला से मन्त्र जाप आरम्भ करें -----

साबर मन्त्र :-----------

  श्री शुक्ले महाशुक्ले कमलदल निवासिनी महालक्ष्म्यै नमो नमःलक्ष्मी माई सत्य की सवाईआवो चेतो करो भलाईना करो तो सात समुद्रों की दुहाईऋद्धि-सिद्धि खाओगी तो नवनाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई ॥

OM SHRI SHUKLE MAHAASHUKLE KAMALDAL NIVAASINI MAHAALAKSHMYEI NAMO NAMAH, LAKSHMI MAAI SATYA KI SAVAAI, AAVO CHETO KARO BHALAAI, NA KARO TO SAAT SAMUDRON KI DUHAAI, RIDDHI-SIDDHI KHAAOGI TO NAVANAATH CHAURAASI SIDDHON KI DUHAAI.

          इस मन्त्र का ११ माला जाप करना है। इसके बाद एक आचमनी जल छोड़कर समस्त जाप माँ भगवती लक्ष्मी जी को समर्पित कर दें और प्रणाम करके उठ जाएं।

          अगले दिन पुनः पत्तों को धूप-दीप अर्पित कर मन्त्र का जाप करें। इस प्रकार से साधक लगातार ४३ दिन तक मन्त्र जाप करते रहें।

         अन्तिम दिन जाप के उपरान्त पत्तों को कपूर को साथ जलाकर उनकी राख बना लें और राख को किसी चाँदी की डिब्बी में डालकर बन्द कर दें।

          ४४ वें दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराएं और यथाशक्ति दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद ग्रहण करें। चाँदी की डिब्बी को गल्ले में ही रख दें, साथ ही थोड़ी-सी राख अपने गल्ले में भी डाल दें।

          अब साधक जब भी अपना व्यापारिक संस्थान खोले तो अन्य पूजा के बाद डिब्बी के समक्ष उपरोक्त मन्त्र का ११ बार उच्चारण करें। इस प्रयोग से साधक की समस्याओं का समाधान होने लगेगा।
Aacharya Goldie Madan
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