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एक मुखी रुद्राक्ष

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1- एक मुखी रुद्राक्ष- इसे पहनने से शोहरत, पैसा, सफलता प्राप्ति और ध्‍यान करने के लिए सबसे अधिक उत्तम होता है। इसके देवता भगवान शंकर, ग्रह- सूर्य और राशि सिंह है। मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।। 2- दो मुखी रुद्राक्ष- इसे आत्‍मविश्‍वास और मन की शांति के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता भगवान अर्धनारिश्वर, ग्रह- चंद्रमा एवं राशि कर्क है। मंत्र- ।। ॐ नम: ।। 3- तीन मुखी रुद्राक्ष- इसे मन की शुद्धि और स्‍वस्‍थ जीवन के लिए पहना जाता है। इसके देवता अग्नि देव, ग्रह- मंगल एवं राशि मेष और वृश्चिक है। मंत्र- ।। ॐ क्‍लीं नम: 4- चार मुखी रुद्राक्ष- इसे मानसिक क्षमता, एकाग्रता और रचनात्‍मकता के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता ब्रह्म देव, ग्रह- बुध एवं राशि मिथुन और कन्‍या है। मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।। 5- पांच मुखी रुद्राक्ष- इसे ध्‍यान और आध्‍यात्‍मिक कार्यों के लिए पहना जाता है। इसके देवता भगवान कालाग्नि रुद्र, ग्रह- बृहस्‍पति एवं राशि धनु व मीन है। मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।। 6- छह मुखी रुद्राक्ष- इसे ज्ञान, बुद्धि, संचार कौशल और आत्‍मविश्‍वास के लिए पहना जाता है। इसके देवता भगवान कार्तिकेय, ग्रह- शुक्र एव

अयोग्य व्यक्ति ( दुर्गुणों से युक्त ) न तो गुरु से दीक्षा पाने का अधिकारी है और न ही वह दीक्षित होने पर साधना के क्षेत्र में कोई उपलब्धि ही हासिल कर पाता है

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मनोविज्ञान द्वारा व्यक्ति के जीवन में उसके दूरगामी प्रभावों की विवेचना करते हुए निष्कर्ष रुप में शास्त्रकारों ने प्रतिपादित किया है कि अयोग्य व्यक्ति ( दुर्गुणों से युक्त ) न तो गुरु से दीक्षा पाने का अधिकारी है और न ही वह दीक्षित होने पर साधना के क्षेत्र में कोई उपलब्धि ही हासिल कर पाता है । यही कारण है कि प्रायः संत - महात्मा हरेक किसी को शिष्य नहीं बनाते । कुपात्रजनों को दिया जाने वाला ज्ञानोपदेश , आध्यात्मिक - संकेत , साधना - परामर्श और मंत्र - दीक्षा आदि सब निरर्थक होते हैं । गुरु और शिष्य के बीच पारस्परिक संबंध बहुत शुचिता और परख के आधार पर स्थापित होना चाहिए , तभी उसमें स्थायित्व आ पाता है । इसलिए गुरुजनों को भी निर्दिष्ट किया गया है कि वे किसी को शिष्य बनाने , उसे दीक्षा देने से पूर्व उसकी पात्रता को भली - भांति परख लें । शास्त्रों का कथन हैं - मंत्री द्वारा किए गए दुष्कृत्य का पातक राजा को लगता है और सेवक द्वारा किए गए पाप का भागी स्वामी बनता है । स्वयंकृत पाप अपने को और शिष्य द्वारा किए गए अपराध का पाप गुरु को लगता है । दीक्षा और साधना के लिए अयोग्य व्यक्तियों के लक्षणों को श

जमीन - जायदाद की समस्या दूर करने और अपने घर की मनोकामना पूर्ति हेतु करे विष्णु भगवान् के इस रूप की तांत्रिकी साधना

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जमीन - जायदाद की समस्या दूर करने और अपने घर की मनोकामना पूर्ति हेतु करे विष्णु भगवान् के   इस रूप की तांत्रिकी साधना  ===================================================================== धर्म शास्त्रों में मानव की आवास समस्या को दूर करने और गृह सुखों के लिए विशेष देव उपासना बताई गई है। इनमें भगवान विष्णु के वराह अवतार की उपासना का खास महत्व है। पौराणिक मान्यताओं में भगवान वराह ने ही दैत्य हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी की रक्षा की। पृथ्वी के रक्षक देव होने के कारण माना जाता है कि जमीन-जायदाद की समस्या को दूर करने और घर की कामनापूर्ति भगवान वराह की भक्ति से शीघ्र पूरी होती है। भूमि या भवन की कामना के लिए भगवान वराह की पूजा हर मंगलवार पर बहुत ही शुभ मानी जाती है। इस उपासना में भगवान वराह के विशेष मंत्र जप का महत्व है।  इस उपासना की सरल विधि- ----------------------------------- मंगलवार को सुबह स्नान कर देवालय में हाथ में जल लेकर भगवान वराह की उपासना का संकल्प लें।  इस संकल्प में अपना नाम, अपने माता-पिता का नाम, गोत्र और मनोकामना बोलें। जानकारी न होने पर यह पूजा किसी विद्वान ब्राहृमण से कराएं

पशुपतास्त्र मंत्र और स्तोत्र

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पशुपतास्त्र मंत्र और स्तोत्र........... * ब्रह्मांड में तीन अस्त्र सबसे बड़े हैं। पहला पशुपतास्त्र, दूसरा नारायणास्त्र एवं तीसरा ब्रह्मास्त्र। इन तीनों में से यदि कोई एक भी अस्त्र मनुष्य को सिद्ध हो जाए, तो उसके सभी कष्टों का शमन हो जाता है। उसके समस्त कष्ट समाप्त हो जाते हैं। परंतु इनकी सिद्धि प्राप्त करना सरल नहीं है। किसी भी प्रकार की साधना करने हेतु मनुष्य के भीतर साहस एवं धैर्य दोनों की आवश्यकता होती है। यह स्तोत्र अग्नि पुराण के 322 वें अध्याय से लिया गया है।  . मंत्र -  ऊँ श्लीं पशु हुं फट्।  विनियोग: ऊँ अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छंदः, पशुपतास्त्ररूप पशुपति देवता, सर्वत्र यशोविजय लाभर्थे जपे विनियोगः।  . षडंग्न्यास:  ऊँ हुं फट् ह्रदयाय नमः। श्लीं हुं फट् शिरसे स्वाहा। पं हुं फट् शिखायै वष्ट्। शुं हुं फट् कवचाय हुं। हुं हुं फट् नेत्रत्रयाय वौष्ट्। फट् हुं फट् अस्त्राय फट्।  . ध्यान:  मध्याह्नार्कसमप्रभं शशिधरं भीमाट्टहासोज्जवलम् त्र्यक्षं पन्नगभूषणं शिखिशिखाश्मश्रु-स्फुरन्मूर्द्धजम्। हस्ताब्जैस्त्रिशिखं समुद्गरमसिं शक्तिदधानं विभुम् दंष्ट्रभीम चतुर्मुखं पशुपतिं दिव्यास्

मूलबन्ध, उड्डियान बन्ध, जालन्धर बन्ध, अश्विनी मुद्रा

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मूलबन्ध, उड्डियान बन्ध, जालन्धर बन्ध, अश्विनी मुद्रा। 1- मूलबन्ध      मूलाधार  प्रदेश  (गुदा  व  जननेन्द्रिय  के  बीच  का  क्षेत्र) को  ऊपर  की  ओर  खींचे  रखना  मूलबन्ध  कहलाता  है। गुदा  को  संकुचित  करने  से  अपान  स्थिर  रहता  है। वीर्य  का  अधः  प्रभाव  रुककर  स्थिरता  आती  है। प्राण  की  अधोगति  रुककर  ऊर्ध्व  गति  होती  है। मूलाधार  स्थित  कुण्डलिनी  में  मूलबन्ध  से  चैतन्यता  उत्पन्न  होती  है। आँतें  बलवान्  होती  हैं। मलावरोध  नहीं  होता, रक्त  सच्चार  की  गति  ठीक  रहती  है। अपान  और  कूर्म  दोनों  पर  ही  मूलबन्ध  का  प्रभाव  पड़ता  है। वे  जिन  तन्तुओं  में  फैले  रहते  हैं, उनका  संकुचन  होने  से  यह  बिखराव  एक  केन्द्र  में  एकत्रित  होने  लगता  है।       २- उड्डियान  बन्ध      पेट  को  ऊपर  की  ओर  जितना  खींचा  जा  सके, उतना  खींच  कर  उसे  पीछे  की  ओर  पीठ  में  चिपका  देने  का  प्रयत्न  इस  बन्ध  में  किया  जाता  है। इससे  मृत्यु  पर  विजय  होती  है। जीवनी  शक्ति  को  बढ़ाकर  दीर्घायु  तक  जीवन  स्थिर  रखने  का  लाभ  उड्डियान  से  मिलता  है। आँतों  की  निष्क्रियता 

नवरात्रि हेतु चमत्कारी चौंतीसा यन्त्र एवं मन्त्र

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नवरात्रि हेतु चमत्कारी चौंतीसा यन्त्र एवं मन्त्र  यह साधना सभी लोग कर सकते है सभी के लिये शुभ फल दाई है ।  एक लाल कपड़े पर विधानपूर्वक माता का घट स्थापित करें । सोलह श्रृंगार चढ़ाए । पंचोपचार पूजन करें ।  चौंतीस के मन्त्र में कुछ भेद मिलते है जितनो की मुझे जानकरी है उतने सभी मन्त्र डल रहा हु । आपको जो सहज लगे वो मन्त्र कर सकते हो ।  आसन लाल , वस्त्र लाल / काले , माला रुद्राक्ष , दिशा पूर्व ।  मन्त्र का 108 बार जाप नित्य करें एवं भोजपत्र पर नित्य ऐसी संख्या में यन्त्र निर्माण करें कि नवमी की तिथि तक 108 यन्त्र बन जाये । यन्त्र निर्माण हेतु अनार की कलम या चांदी की कलम प्रयोग करे । श्याही के लिए अष्टगंध / कुमकुम या केसर उपयोग करें ।  अंतिम दिन सभी 108 निर्मित यंत्रों को बहते जल में प्रवाहित करदें मन्त्र उच्चारित करते हुए एवं कमसे कम 9 कन्याओं और 1 बालक को यथाशक्ति यथासामर्थ्य भोजन करवाये ।  मन्त्र सिद्ध होजायेगा । यन्त्र का प्रयोग किस प्रकार करना है वो आवश्यकता के साथ बता दिया जाएगा । जो यह साधना कर रहे है वो सूचित करदें एक बार करने से पूर्व । कोई शुल्क नही मांगा जाएगा ।  अब मन्त्रो की बारी

अबोध बच्चे बड़े प्यारे लगते यहाँ ज्यादा जो आकर्षित करता वो होता आभामंडल ,उनकी ऊर्जा जिसे तेजोवलय ओर ओरा भी कहते इंग्लिश में

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अबोध बच्चे बड़े प्यारे लगते यहाँ  ज्यादा जो आकर्षित करता वो होता आभामंडल ,उनकी ऊर्जा जिसे तेजोवलय ओर ओरा भी कहते इंग्लिश में ।  यह सम्पूर्ण संसार ऊर्जा से ही निर्मित है । बिना ऊर्जा के इस दुनियाँ में किसी भी चीज का अस्तित्व हो ही नही सकता ।  फिर वह चाहे इंसान हो , सजीव चल या अचल वस्तु, प्राणी हो या निर्जीव स्थिर वस्तु , हर एक पदार्थ में ऊर्जा होना उसकी मौजूदगी को दर्शाता है। देवी या देवताओं के चित्रों में पीछे जो गोलाकार प्रकाश दिखाई देता है हम उसकी बात कर रहे। ओरा सजीव व्यक्तियों से लेकर निर्जीव व्यक्ति, वस्तुओं का भी हो सकता है। धरती का आभामंडल है।  आपने चंद्रमा के आसपास प्रकाश देखा ही होगा। यही उसका आभामंडल है जो ध्यान से देखने पर दूर तक गोल दिखाई देता है। यह ऊर्जा हर किसी में उसके आचार विचार के अनुसार होती है, तथा उनके शरीर के आकार का ही ऊर्जामय घेरा या वलय होता है । जिसे सामान्य आंखो से सब नहीं देख सकते  किंतु औरा डिटेक्टर से इसकी फोटोग्राफी कराई जा सकती है। चाहे मनुष्य हो या अन्य कोई भी जीव हो, हर किसी का अपना औरा होता है। यह औरा विभिन्न रंगों की किरणों के साथ मनुष्य के आसपास चक्र