तंत्र रहस्य,फूंकना,दम करना

#दिव्य_कुण्ड
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तंत्र रहस्य,फूंकना,दम करना 

क्या लगता हैं आपको की, एक दिन में सिगरेट व चाय  पिने वालो की अपेक्षा एक आम व्यक्ति दिन में कितनी बार फूंकता होगा?
यदि आप चाय बीडी सिगरेट नहीं पिते तो आप क्यों फूंकेगे?
सोचिये????
जब हम को चोट पहुचति है शरिर के किसी भी अंग को,
तो सबसे पहली प्रतिक्रीया हमारी फूंकने की क्यों होती हैं?
क्या होता हैं फूँकने से?
तंत्र में अभिमंत्रित एवं फूँकने करने की परम्परा है इस परम्परा का रहस्य क्या हैं?

हम सब के भीतर एक कुण्ड है जो भी जिवित है एवं सांस लेता हैं उसके भीतर यह कुंड प्रकृतिक रूप से विराजमान होता है।इस कुंड के भीतर श्वास-प्रश्वास  के मनथन से एक प्राण ऊर्जा प्राप्त होती  है जिसका नित्य भंडारण होता रहता है ।प्राण ऊर्जा और श्वास में थोड़ा भेद होता है। श्वास वो होता है जिसे हम प्रकृतिक रूप से नाक के द्वारा खिचते और छोड़ते रहते है। साधारण भाषा में इसे "श्वास प्रशवास "की क्रिया के नाम से जाना जाता है। इस श्वास के भीतर "प्राणतत्त्व "भी संचरण करता रहता है। श्वास ग्रहण करने से वायु के साथ हमारे शरिर के भीतर  प्राणतत्त्व लगाता भरता रहता है। यह प्राण तत्त्व हमसे हमेशा जुडा रहता है जैसे सागर से बहुत सी सरिताए जुडी रहती है।क्योकि शरीर के भीतर और बाहर हमारे चारो और मात्र प्राण ऊर्जा विद्यमान है । 
आप ऐसे भी कहा सकते है की हम प्राण ऊर्जा के सागर के भीतर उसी प्रकार रहते है जिस प्रकार मीन जल में रहती है।
इस प्राण ऊर्जा से हमारा पूरा शरिर भरा होता है।लगातार मुख से एवं नाक से श्वास ग्रहण करते रहने से इस प्राण का भंडारण  लगातार होते रहता है।किन्तु कुछ परीस्थिरियों में इस का निर्माण अत्यधिक मात्रा में होता है
 जैसे दौड़ना,पहाड़ चहड़ना, या फिर काम भाव का जागना,या संभोग करना,रमण करना इत्यादि काल है।
जब हम श्वास ग्रहण करते है तब भी यह प्राण भीतर उपस्थित रहता है और जब हम श्वास ग्रहण करते है तब पहले का भरा श्वास प्रश्वास के माध्यम से निकल जाता है और उसका स्थान नयी एव शुद्ध श्वास ले लेती है ।यह क्रिया लगातार चलति रहती है।
ये विषय बहुत बड़ा है हम कभी और इस विषय पे बात करेगे। फ़िलहाल हमारा विषय "फूँकने "से है। तो आगे बडते है।
इस कुण्ड का स्थान शरीर में नाभि पर होता है।और जब भी आप फूँकते है तो पूरा जोर नाभि पर पड़ता है।और इस कुंड पे जोर पड़ते ही कुण्ड में हलचल होने लगति हैऔर एक प्रकार का मंथन होने लगता हैं जिससे तीव्र ऊर्जा का निर्माण होने लगता है। इस ऊर्जा में और साधारण तह जो प्रकृतिक ऊर्जा हम ग्रहण करते है उसमे एक भेद है ।
यह ऊर्जा भावना को ग्रहण कर सकती है। आपकी कामना एव कलपना शक्ति से ये अत्यन्त बलवान हो कर आपके आदेशो का पालन कर सकती है। फिर वो आदेश सकारात्मक हो या नकारात्मक उससे इस ऊर्जा को कोई फ़रक नहीं पड़ता। इस ऊर्जा का प्रेषण हम हम किसी भी वास्तु पे कर सकते है। यह प्रेषण ही अभिमन्त्रण कहलाता है।।जब हम कोई भी ऐसा काम करे जिसमे अत्यधिक शक्ति की आवश्यकता हो तो यह कुण्ड अपनी शक्ति का प्रसारण करने लगता है। और हमारी श्वास प्रश्वास की गति बड जाती है। और हम नाँक और मुंह दोनों से श्वास प्रश्वास एक साथ प्रारम्भ करा देते है।।।इस स्थिति का निर्माण कुछ विशेष कालो में होता है जैसे दौड़ना,पहाड़ चहड़ना, या फिर काम भाव का जागना,या संभोग करना,रमण करना इत्यादि काल ।।
इसी कारण वश ऋशि मुनियों ,ने देवताओं की स्थापना पर्वतो पे की है। 
 जो व्यक्ति इस रहस्य को जानते है वे कभी नहीं फूँकते।
श्वास फूंकने की पाँच विधियाँ होती है 
1नाक से सांस लेना और नाक से छोड़ना :-  यहाँ सामान्य परिपथ कहलाता है सामान्यत: हर जिव इसी परिपथ में जिवन यापन करता है।   
2 नाक से ग्रहण करना एवं मुह से छोडना :-जब आप को गरमी लगने लगे तो यह परिपथ प्रकृतिक रूप से प्रारम्भ हो जाता है।
3मुह से ग्रहण करना एव मुह से ही छोड़ना:-यह परिपथ चोट लगने से। जलजाने से शीतलता प्रदान कर दाह पीड़ा को कम करता है। 
4 मुह से लेना  और नाक से छोड़ना:-इस परक्रिया में ऊर्जा का परिपथ विपरित दिशा से प्रवाहित होने लगता है तंत्र में इस परिपथ के द्वारा बाहरी बाधाओ का निवारण किया जाता है।
5 नाक और मुख से श्वास लेना और नाक और मुख से श्वास छोड़ना ।:- इस स्थिति का निर्माण कुछ विशेष कालो में होता है जैसे दौड़ना,पहाड़ चहड़ना, या फिर काम भाव का जागना,या संभोग करना,रमण करना इत्यादि काल ।।
यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये भी है की सांस छोडने या फूँकने की भी दो विधीयाँ है 
प्रथम तो जैसे हम किसी वस्तू को जलाने हेतु  सुलगाने के लिए उपयोग करते है इस प्रक्रिया में सांस को पूरा भरकर लम्बे समय तक फूँकते है ।तंत्र में ऐसी सांस का उपयोग जिवन बचाने हेतु किया जाता है ।
और दूसरा जैसे दिपक को या मोमबत्ती की ज्योति को बुझाने के लिए उपयोग करते है। छोटी और तीव्र सांस।। तंत्र में मारन हेतु ऐसी सांस का उपयोग किया जाता है। 
उपर बताई पाञ्च विधियो में से सभी विधियों का तंत्र में भिन्न भिन्न उपयोग किया जाता है। किन्तु इस फूँकने की प्रक्रिया को यदि रोज किया जाए तो यह प्राण घातक परिणाम प्रदान करति है। जब तक आप नहीं फुंकेगे तब तक इस रहस्यमयी कुण्ड में ऊर्जा का निर्माण एव् वीर्य के स्थूल रूप में जमाव होता रहता है ।और आवश्यकता के समय यह ऊर्जा हमारी रक्षा करते रहती है। किन्तु बार बार फूँकने से से यह कुन्ड सूखने लगता है ।भूख प्यास खत्म हो जाती है। अजीब से विचार आने लगते है। इसे ही ब्रह्म्दोश कहा जाता है।। दिमाग में आकसीजन की कमी के कारण दिवा स्वप्न की स्तिथि का निर्माण होने लगता है।
साधना के द्वारा साधक को इस स्थति को अपने नियंत्रण कर शक्ति का निर्माण कर समाज के हित में प्रयोग करने का आदेश तंत्र शास्त्र में दिया गया है।
किन्तु ईश्वर के मार्ग में चलने वालो के लिए ये पांचो विधियां भी बंधन ही होती है।
इस विधि का पूरा रहस्य यह है की जब भी आप मुख से फूंकते  है तो ब्रह्मांडीय ऊर्जा नीचे की ओर बहने लगती है और जब भी आप नाक से फूँकते तो यह ऊर्जा ऊपर की ओर बहने लगती है। इस विधियों के सही एवं पूर्ण उपयोग की विधि योग्य गुरु को ही पता होती है। कुंडली शक्ति की प्राप्ति हेतु चक्रो तक ऊर्जा पहुचाने की यही विधि है ।कुंडली के चक्रो तक ऊपर से नीचे की और ऊर्जा का प्रवाह करने हेतु साँसों को नियंत्रण में रख कर ध्यान के द्वारा अन्य चक्रों तक पहुचाया जाता है। जो की गुरु गम्य विधि होने के कारण दुर्लभ है। इसमे कब कितनी साँस लेना ,कितने अन्तराल में छोड़ना ये मुख्य है। थोड़ी सी भी गलती आपकी कुंडली शक्ति को किसी अन्य स्थान में भेज सकती है जिससे साधक का नाश निश्चित होता है। अत:नविन साधको से निवेदन है की वे इस पोस्ट को ज्ञानार्थ ही ले एव सही गुरु के निरदेशन में प्रयोग करे।
🕉️🙏🏻🚩जयश्री महाकाल🚩🙏🏻आदेश आदेश नमो नमः

 Aacharya Goldie Madan
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Comments

  1. Our gnyan vidhyak bate
    ऋषी परंपरा नुसार....

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