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Showing posts from December, 2021

मूलबन्ध, उड्डियान बन्ध, जालन्धर बन्ध, अश्विनी मुद्रा

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मूलबन्ध, उड्डियान बन्ध, जालन्धर बन्ध, अश्विनी मुद्रा। 1- मूलबन्ध      मूलाधार  प्रदेश  (गुदा  व  जननेन्द्रिय  के  बीच  का  क्षेत्र) को  ऊपर  की  ओर  खींचे  रखना  मूलबन्ध  कहलाता  है। गुदा  को  संकुचित  करने  से  अपान  स्थिर  रहता  है। वीर्य  का  अधः  प्रभाव  रुककर  स्थिरता  आती  है। प्राण  की  अधोगति  रुककर  ऊर्ध्व  गति  होती  है। मूलाधार  स्थित  कुण्डलिनी  में  मूलबन्ध  से  चैतन्यता  उत्पन्न  होती  है। आँतें  बलवान्  होती  हैं। मलावरोध  नहीं  होता, रक्त  सच्चार  की  गति  ठीक  रहती  है। अपान  और  कूर्म  दोनों  पर  ही  मूलबन्ध  का  प्रभाव  पड़ता  है। वे  जिन  तन्तुओं  में  फैले  रहते  हैं, उनका  संकुच...

नवरात्रि हेतु चमत्कारी चौंतीसा यन्त्र एवं मन्त्र

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नवरात्रि हेतु चमत्कारी चौंतीसा यन्त्र एवं मन्त्र  यह साधना सभी लोग कर सकते है सभी के लिये शुभ फल दाई है ।  एक लाल कपड़े पर विधानपूर्वक माता का घट स्थापित करें । सोलह श्रृंगार चढ़ाए । पंचोपचार पूजन करें ।  चौंतीस के मन्त्र में कुछ भेद मिलते है जितनो की मुझे जानकरी है उतने सभी मन्त्र डल रहा हु । आपको जो सहज लगे वो मन्त्र कर सकते हो ।  आसन लाल , वस्त्र लाल / काले , माला रुद्राक्ष , दिशा पूर्व ।  मन्त्र का 108 बार जाप नित्य करें एवं भोजपत्र पर नित्य ऐसी संख्या में यन्त्र निर्माण करें कि नवमी की तिथि तक 108 यन्त्र बन जाये । यन्त्र निर्माण हेतु अनार की कलम या चांदी की कलम प्रयोग करे । श्याही के लिए अष्टगंध / कुमकुम या केसर उपयोग करें ।  अंतिम दिन सभी 108 निर्मित यंत्रों को बहते जल में प्रवाहित करदें मन्त्र उच्चारित करते हुए एवं कमसे कम 9 कन्याओं और 1 बालक को यथाशक्ति यथासामर्थ्य भोजन करवाये ।  मन्त्र सिद्ध होजायेगा । यन्त्र का प्रयोग किस प्रकार करना है वो आवश्यकता के साथ बता दिया जाएगा । जो यह साधना कर रहे है वो सूचित करदें एक बार करने से पूर्व । कोई शुल्क नही...

अबोध बच्चे बड़े प्यारे लगते यहाँ ज्यादा जो आकर्षित करता वो होता आभामंडल ,उनकी ऊर्जा जिसे तेजोवलय ओर ओरा भी कहते इंग्लिश में

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अबोध बच्चे बड़े प्यारे लगते यहाँ  ज्यादा जो आकर्षित करता वो होता आभामंडल ,उनकी ऊर्जा जिसे तेजोवलय ओर ओरा भी कहते इंग्लिश में ।  यह सम्पूर्ण संसार ऊर्जा से ही निर्मित है । बिना ऊर्जा के इस दुनियाँ में किसी भी चीज का अस्तित्व हो ही नही सकता ।  फिर वह चाहे इंसान हो , सजीव चल या अचल वस्तु, प्राणी हो या निर्जीव स्थिर वस्तु , हर एक पदार्थ में ऊर्जा होना उसकी मौजूदगी को दर्शाता है। देवी या देवताओं के चित्रों में पीछे जो गोलाकार प्रकाश दिखाई देता है हम उसकी बात कर रहे। ओरा सजीव व्यक्तियों से लेकर निर्जीव व्यक्ति, वस्तुओं का भी हो सकता है। धरती का आभामंडल है।  आपने चंद्रमा के आसपास प्रकाश देखा ही होगा। यही उसका आभामंडल है जो ध्यान से देखने पर दूर तक गोल दिखाई देता है। यह ऊर्जा हर किसी में उसके आचार विचार के अनुसार होती है, तथा उनके शरीर के आकार का ही ऊर्जामय घेरा या वलय होता है । जिसे सामान्य आंखो से सब नहीं देख सकते  किंतु औरा डिटेक्टर से इसकी फोटोग्राफी कराई जा सकती है। चाहे मनुष्य हो या अन्य कोई भी जीव हो, हर किसी का अपना औरा होता है। यह औरा विभिन्न रंगों की किरणों के ...

ओज उर्जाए

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जय महाकाल संग मा कामख्या अलख जथुरी प्रणाम ओज उर्जाए:- आज उर्जाए अघोड़ की रीढ़ की हड्डी समान है।सामान्य भाषा मे ओज ऊर्जाओं को उग्र उर्जाए कह सकते है।अघोड़ में बिना उग्र हुए न ओज ऊर्जाओं का निर्माण कर सकते हो न ही ओज ऊर्जाओं के चरम बिंदु पर पहुंच सकते हो।एक साधारण सा उद्दाहरण देता हूं समझना। अगर हमको किन्ही 2 साह्रो के बीच मे यात्रा करनी हो और गाड़ी में उतना पेट्रोल ही नही हो तो मंजिल तक नही पहुंच सकते चाहे गाड़ी कितनी भी महंगी ओर अछि हो।उसी प्रकार अघोड़ की कुछ प्रारंभिक साधनाओ को छोड़कर समस्त साधनाओ में अगर आपकी ओज उर्जाए उस साधना को पूर्ण करने हेतु सक्षम नही है तो आप चाहे कितने भी महंगे सामान ओर कितनी भी सटीक विधि से साधना कर लेवे वो साधना पूर्ण नही होगी।उल्टी अधूरी साधना फलस्वरूप फायदे की जगह नुकसान ही होगा। अब बात करे कि ओज ऊर्जाओं का निर्माण,संवर्धन ओर उनको सरीर में एकत्रित करके कैसे रखा जाए तो इसके लिए सर्वप्रथम अपने अपने गुरु से चर्चा करें।आपके प्रत्येक के गुरु और उनके ज्ञान को इस अज्ञानी का नमन। बस एक बात की सुरुवात में कर देता हूं कि अघोड़ के पंचांगको से ही इनका निर्माण संभव है। Whats a...

शिव गायत्री एवं सहसस्त्राक्षर मंत्र

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शिव गायत्री एवं सहसस्त्राक्षर मंत्र ॐ  महादेवाय विद्महे, रुद्र मूर्तये धीमहि,तन्नो शिवः प्रचोदयात् ॥ रुद्राक्ष माला से यथा शक्ति जाप करें । फिर निम्लिखित मंत्र जपे:- ॐ नमो भगवते सदाशिवाय सकलतत्वात्मकाय सर्वमन्त्रस्वरूपाय सर्वयन्त्राधिष्ठिताय सर्वतन्त्रस्वरूपाय सर्वतत्वविदूराय ब्रह्मरुद्रावतारिणे नीलकण्ठाय पार्वतीमनोहरप्रियाय सोमसूर्याग्निलोचनाय भस्मोद्धूलितविग्रहाय महामणि मुकुटधारणाय माणिक्यभूषणाय सृष्टिस्थितिप्रलयकाल- रौद्रावताराय दक्षाध्वरध्वंसकाय महाकालभेदनाय मूलधारैकनिलयाय तत्वातीताय गङ्गाधराय सर्वदेवाधिदेवाय षडाश्रयाय वेदान्तसाराय त्रिवर्गसाधनाय अनन्तकोटिब्रह्माण्डनायकाय अनन्त वासुकि तक्षक- कर्कोटक शङ्ख कुलिक- पद्म महापद्मेति- अष्टमहानागकुलभूषणाय प्रणवस्वरूपाय चिदाकाशाय आकाश दिक् स्वरूपाय ग्रहनक्षत्रमालिने सकलाय कलङ्करहिताय सकललोकैककर्त्रे सकललोकैकभर्त्रे सकललोकैकसंहर्त्रे सकललोकैकगुरवे सकललोकैकसाक्षिणे सकलनिगमगुह्याय सकलवेदान्तपारगाय सकललोकैकवरप्रदाय सकललोकैकशङ्कराय सकलदुरितार्तिभञ्जनाय सकलजगदभयङ्कराय शशाङ्कशेखराय शाश्वतनिजवासाय निराकाराय निराभासाय निरामयाय निर्मलाय निर्मदाय ...

शास्त्रों के अनुसार कर्मों की योनियाँ

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शास्त्रों के अनुसार कर्मों की योनियाँ । प्रश्न :- कितने प्रकार की और कितनी योनियां हैं? उत्तर :- तीन प्रकार की योनियाँ हैं- १.कर्म योनि। २.भोग योनि। ३.उभय योनि। कुल योनियाँ चौरासी लाख कही जाती है।  _स्वर्गवासी पं. लेखराम जी_ ने अनेक महात्माओं की साक्षी देकर यह लिखा है।चौरासी लाख योनियों की गणना इस प्रकार कही गयी है। जल-जन्तु ७ लाख,पक्षी १० लाख,कीड़े-मकोड़े ११ लाख,पशु २० लाख,मनुष्य ४ लाख और जड़ (अचल,स्थावर) ३२ लाख योनियाँ हैं।(देखो गीता रहस्य ले. तिलककृत पृष्ठ १५४) श्रेष्ठतम योनि:- 〰〰〰〰 प्रश्न :- कर्म योनि और भोग योनि तो मैंने भी सुनी हैं।कर्म योनि तो मनुष्यों की है और भोग योनि पशुओं की।परन्तु यह उभय योनि तो आज ही नई सुनी है।इसका क्या आशय है? उत्तर :- जो तुमने सुन रखा है,वह भी यथार्थ नहीं। वास्तव में भोग योनि वही है जिसमें केवल भोग ही भोगा जाता है और कर्म नहीं किया जाता। वह बंदी के समान है,उसे ही पशु योनि कहते हैं।उभय योनि वह है जिसमें पिछले कर्मों का फल भी भोगा जाता है और आगे के लिए कर्म भी किया जाता है।वह योनि मनुष्य योनि कहलाती है। फिर यह कर्म योनि भी दो प्रकार की है। एक तो वह जो आद...

माता वैष्णो देवी की अमर कथा

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माता वैष्णो देवी की अमर कथा  : वैष्णो देवी उत्तरी भारत के सबसे पूजनीय और पवित्र स्थलों में से एक है। यह मंदिर पहाड़ पर स्थित होने के कारण अपनी भव्यता व सुंदरता के कारण भी प्रसिद्ध है। वैष्णो देवी भी ऐसे ही स्थानों में एक है जिसे माता का निवास स्थान माना जाता है। मंदिर, 5,200 फीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हर साल लाखों तीर्थ यात्री मंदिर के दर्शन करते हैं।यह भारत में तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थस्थल है। वैसे तो माता वैष्णो देवी के सम्बन्ध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं लेकिन मुख्य 2 कथाएँ अधिक प्रचलित हैं। माता वैष्णो देवी की प्रथम कथा मान्यतानुसार एक बार पहाड़ों वाली माता ने अपने एक परम भक्तपंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी लाज बचाई और पूरे सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वह नि:संतान होने से दु:खी रहते थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया। माँ वैष्णो कन्...