मूलबन्ध, उड्डियान बन्ध, जालन्धर बन्ध, अश्विनी मुद्रा
मूलबन्ध, उड्डियान बन्ध, जालन्धर बन्ध, अश्विनी मुद्रा। 1- मूलबन्ध मूलाधार प्रदेश (गुदा व जननेन्द्रिय के बीच का क्षेत्र) को ऊपर की ओर खींचे रखना मूलबन्ध कहलाता है। गुदा को संकुचित करने से अपान स्थिर रहता है। वीर्य का अधः प्रभाव रुककर स्थिरता आती है। प्राण की अधोगति रुककर ऊर्ध्व गति होती है। मूलाधार स्थित कुण्डलिनी में मूलबन्ध से चैतन्यता उत्पन्न होती है। आँतें बलवान् होती हैं। मलावरोध नहीं होता, रक्त सच्चार की गति ठीक रहती है। अपान और कूर्म दोनों पर ही मूलबन्ध का प्रभाव पड़ता है। वे जिन तन्तुओं में फैले रहते हैं, उनका संकुच...