कामदायिनी_षोडशी_साधन
#कामदायिनी_षोडशी_साधन ।। ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ "पीत्वा पीत्वा पुनर्पित्वा पतित भूतले"इतना अधिक पियो को धरती पर गिर पड़ो। षोडशी पूजा में साधक भगवतीरूपी कन्या या स्त्री को कारण वारि यानी मद्य अर्पण करते है और स्वयं भी प्रसाद रूप में इतना अधिक मद्य पिते है की उन्हें अपना होश नहीं रहता ,इतना अधिक पियो को धरती पर गिर पड़ो।मद्य पिने से मनुष्य अपने होश-हवास खो बैठता है।किसी भी नशीली वस्तु के सेवन से शरीर के तंतुओ पे एक प्रकार की तीव्रता आ जाती है और मद्य में ये प्रभाव है की वह शरिर और मन की अच्छी-बुरी प्रवृत्तियों को उभार देती है।क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को,कामी व्यक्ति के काम को,इसी प्रकार उस व्यक्ति के शरीर व मन में बUसने वाले गुणों और दुर्गुणों को उभार देती है।और अपने ही शरिर की सुधा नहीं रहती। स्त्री पुरुष के सम्बन्ध के समय जो चरम आनंद की स्थिति होती है उसे विश्यानंद की संज्ञा दी गई है,स्त्री सम्बन्ध से जो विषयानंद प्राप्त होता है वह परमात्मा के आत्मा के मिलने के परमानंद से कुछ ही कम है।विषयानंद को परमानंद का सहोदर माना जाता है। बहुत से सम्प्रदाय सही मार्ग दर्शन नहीं कर पान...