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सर्वदोष नाश के लिये रुद्राभिषेक विधि -

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रुद्राभिषेक - 🕉️➖🕉️ सर्वदोष नाश के लिये रुद्राभिषेक विधि - 🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰 रुद्राभिषेक अर्थात रूद्र का अभिषेक करना यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। जैसा की वेदों में वर्णित है शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है। क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पटक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है। रूद्रहृदयो

शादी में विलंब या शादी न होने से हैं परेशान, जानें कारण और करें समाधान

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शादी में विलंब या शादी न होने से हैं परेशान, जानें कारण और करें समाधान 🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰 ✍️मेरी शादी कब होगी, जीवनसाथी कैसा होगा, विवाह में कोई विलंब तो नहीं और अगर है तो क्या? और शादी के उपाय क्या हैं? विवाह योग्य युवक और युवतियों के मन में ऐसे कई सवाल अाते हैं, लेकिन उचित जानकारी के अभाव में इसका जवाब नहीं मिल पाता। भारतीय संस्कृति में 16 संस्कारों में विवाह संस्कार भी आता है, जो अहम है। कई बार शादी नहीं होती और कई बार शादी के बाद संबंध विच्छेद हो जाता है। यह सब कुछ ग्रहों के फेर के कारण होता है। कुंडली का सातवां घर बताता है कि आपकी शादी किस उम्र में होगी। शादी के लिए कौन सी दिशा उपयुक्त रहेगी जहां प्रयास करने पर जल्द ही शादी हो सके। कुल मिलाकर जब एक से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव सातवें घर पर हो तो विवाह में विलंब होता है। ग्रहों के कारण अाती है विवाह में बाधा वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब कुंडली, यदि छठे घर से संबंधित दशा या अन्तर्दशा चल रही हो तो विवाह में विलंब या विघ्न उत्पन्न होता है। कई बार विलंब से शादी होने पर भी उपयुक्त जीवन साथी नहीं मिल पाता है। यहां हम विवाह में विलंब

गोरख_वचन

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#गोरख_वचन ◆◆◆◆◆◆◆ सत नमो आदेश,गुरीजी को आदेश,ॐ गुरूजी।। गोरख बोली सुनहु रे अवधू,  पंचों पसर निवारी अपनी आत्मा एपी विचारो,  सोवो पाँव पसारी “ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई असं द्रिधा करी धरो ध्यान |  अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म ज्ञान नासा आगरा निज ज्यों बाई |  इडा पिंगला मध्य समाई ||  छः साईं सहंस इकिसु जप |  अनहद उपजी अपि एपी || बंक नाली में उगे सुर |  रोम-रोम धुनी बजाई तुर ||  उल्टी कमल सहस्रदल बस |  भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश ||  गगन मंडल में औंधा कुवां,  जहाँ अमृत का वासा |  सगुरा होई सो भर-भर पिया,  निगुरा जे प्यासा । । 🚩जै श्री महाकाल🚩आदेश आदेश नमो नमः aacharya Goldie Madan Whats app +16475102650 and +919717032324

अपने ऊपर तान्त्रिक प्रयोग का कैसे पता करें

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*अपने ऊपर तान्त्रिक प्रयोग का कैसे पता करें*    💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀💀 *टोने -टोटके हैं या नहीं इन लक्षणों से जानें* 🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰➖🔰 *अक्सर लोग सोचते हैं की किसी ने उनपर कोई जादू टोना या तांत्रिक प्रयोग कर दी है तो आईये जानते हैं –* 1) रात को सिरहाने एक लोटे मैं पानी भर कर रखे और इस पानी को गमले मैं लगे या बगीचे मैं लगे किसी छोटे पौधे मैं सुबह डाले 3 दिन से एक सप्ताह मे वो पौधा सूख जायेगा  । 2) रात्रि को सोते समय एक हरा नीम्बू तकिये के नीचे रखे और प्रार्थना करे कि जो भी नेगेटिव क्रिया हूई इस नीम्बू मैं समाहित हो जाये । सुबह उठने पर यदि नीम्बू मुरझाया या रंग काला पाया जाता है तो आप पर तांत्रिक क्रिया हुई है। 3) यदि बार बार घबराहट होने लगती है, पसीना सा आने लगता हैं, हाथ पैर शून्य से हो जाते है । डाक्टर के जांच मैं सभी रिपोर्ट नार्मल आती हैं।लेकिन अक्सर ऐसा होता रहता तो समझ लीजिये आप किसी तान्त्रिक क्रिया के शिकार हो गए है । 4) आपके घर मैं अचानक अधिकतर बिल्ली,सांप, उल्लू, चमगादड़, भंवरा आदि घूमते दिखने लगे ,तो समझिये घर पर तांत्रिक क्रिया हो रही है। 5) आपको अचानक भूख लगती ले

नाथ_सम्प्रदाय

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#नाथ_सम्प्रदाय ◆◆◆◆◆◆◆◆◆ प्राचीन काल से चले आ रहे नाथ संप्रदाय को गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ ने पहली दफे व्यवस्था दी। गोरखनाथ ने इस सम्प्रदाय के बिखराव और इस सम्प्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया। गुरु और शिष्य को तिब्बती बौद्ध धर्म में महासिद्धों के रुप में जाना जाता है। परिव्रराजक का अर्थ होता है घुमक्कड़। नाथ साधु-संत दुनिया भर में भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम चरण में किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं या फिर हिमालय में खो जाते हैं। हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध, जटाधारी धूनी रमाकर ध्यान करने वाले नाथ योगियों को ही अवधूत या सिद्ध कहा जाता है। ये योगी अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे 'सिले' कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को 'सींगी सेली' कहते हैं। इस पंथ के साधक लोग सात्विक भाव से शिव की भक्ति में लीन रहते हैं। नाथ लोग अलख (अलक्ष) शब्द से शिव का ध्यान करते हैं। परस्पर 'आदेश' या आदीश शब्द से अभिवादन करते हैं। अलख और आदेश शब्द का अर्थ प्रणव या परम पुरुष होता है। जो नागा (दिगम्

🔥🔥 शत्रु दमन भैरव साधना🔥🔥

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🔥🔥 शत्रु दमन भैरव साधना🔥🔥 शत्रुओं से रक्षा एवं उनके शत्रु नाश के लिये यह साधना  उन साधकों को करना चाहिये जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष शत्रुबाधाओं का सामना कर रहे हों। इस हेतु शुभमुहूर्त में सवाकिलो बूंदी के लड्डू, नारियल, अगरबत्ती और लाल पुष्प की माला से भैरवजी का पूजन करें। पूजन से पहले सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करें, तत्पश्चात् अपना संकल्प बोलकर मंत्र की एक माला करें। यह प्रयोग प्रारम्भ करते हुए निरन्तर 21 दिनों तक करना है। इसके बाद प्रातःकाल 7 बार पढ़ना है। इस प्रयोग से जीवन में शत्रु का दमन होना शुरू हो जाएगा । 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 पड़ता है। प्रारंभ में जो पूजन सामग्री दी गई है, वह प्रथम और अन्तिम दिन भैरवजी को अर्पित करनी है। शेष दिनों में धूप-दीप करने के पश्चात् केवल मंत्रजप ही करना है।                     🌞 मंत्र 🌞 हमें जो सतावै, सुख न पावै सातों जन्म । इतनी अरज सुन लीजै, वीर भैरों आज तुम || जितने होंय सत्रु मेरे, और जो सताय मुझे । वाही को रक्तपान, स्वान को कराओ तुम || मार-मार खड्गन से, काट डारो माथ उनके। मास रक्त से नहावो, वीर भैरों तुम । कालका भवानी, सिंहवाहिनी

🔯🚩गुरु मँत्र क्यो आवश्यक है?🚩🔯

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🔯🚩गुरु मँत्र क्यो आवश्यक है?🚩🔯 क्या कारण है कि लोगों को मंत्र गुप्त रखने के लिए कहा जाता है? मंत्र दीक्षा का अर्थ है कि जब तुम समर्पण करते हो तो गुरु तुममें प्रवेश कर जाता है, वह तुम्हारे शरीर, मन, आत्मा में प्रविष्ट हो जाता है। गुरु तुम्हारे अंतस में जाकर तुम्हारे अनुकूल ध्वनि की खोज करेगा। वह तुम्हारा मंत्र होगा। और जब तुम उसका उच्चारण करोगे तो तुम एक भिन्न आयाम में एक भिन्न व्यक्ति होओगे। जब तक समर्पण नहीं होता, मंत्र नहीं दिया जा सकता है। मंत्र देने का अर्थ है कि गुरु ने तुममें प्रवेश किया है, गुरु ने तुम्हारी गहरी लयबद्धता को, तुम्हारे प्राणों के संगीत को अनुभव किया है। और फिर वह तुम्हें प्रतीक रूप में एक मंत्र देता है जो तुम्हारे अंतस के संगीत से मेल खाता हो। और जब तुम उस मंत्र का उच्चार करते हो तो तुम आंतरिक संगीत के जगत में प्रवेश कर जाते हो, तब आंतरिक लयबद्धता उपलब्ध होती है। मंत्र तो सिर्फ चाबी है। और चाबी तब तक नहीं दी जा सकती जब तक ताले को न जान लिया जाए। यही कारण है कि मंत्रों को गुप्त रखा जाता है। अगर तुम अपना मंत्र किसी और को बताते हो तो वह उसका प्रयोग कर सकता है । य