आदिशक्ति_महामाया_महाकाली_विराट_स्वरूप

#आदिशक्ति_महामाया_महाकाली_विराट_स्वरूप
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आदिशक्ति माता कालिका के शास्त्रो -पुराणों में अनेक रूप बताये गए हैं मेरे  अनुसार तो काली के करोड़ो-खरबो रूप है।आदिशक्ति मूलाधार निवासिनी है मूलाधार से जो काली पैदा होती है वह काली ही काली को जन्म देती है और इस प्रकार,सभी काली अपने से कालियो को जन्म देती जाती है अनंत तक।इसे बहुत गहनता से,ध्यान से,कागज पे समझाने की कोशिश की जा सकती है लिख के समझाना थोड़ा मुश्किल है।ये सर्फ काली के जन्मों का ही रहस्य नही है इसी क्रम से दक्षमाहाविद्या की समस्त देवियां करोड़ो-खरबो रूप में विभाजित हो जाती है।इन सभी के एक शिव होते है मतलब दस मूल दस देवियो के दस शिव।और जहाँ जहाँ काली या अन्य देवीय होती है वहां सब के अलग-अलग शिव।इस प्रकार शिव भी करोड़ो-खरबो रूप में विभक्त हो जाते है फिर किसी का नाम माहाँकाल है तो किसी का नीलकंठ आदि।किन्तु ये शिव हो या महाशक्तियां इन सबके जो मुल में है वो #कालशिव है जिनकी कामना से एक महाशक्ति का जन्म हुआ,फिर उन दोनों का विस्तार होता गया।
👉व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©०२.२०२२

जिनमें से प्रमुख  रूप कहे या नाम कहे ये चार ही माने गए ।
1.दक्षिणा काली
2.शमशान काली
3.मातृ काली  
4.महाकाली।
इसके अलावा श्यामा काली, गुह्य काली, अष्ट काली और भद्रकाली आदि अनेक रूप भी है। सभी रूपों की अलग अलग पूजा और उपासना पद्धतियां हैं। आओ जानते हैं दक्षिण काली क्या है?
दशमहाविद्यान्तर्गत भगवती दक्षिणा काली (दक्षिण काली) की उपासना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि महाकाल की प्रेयसी काली ही अपने दक्षिण और वाम रूप में प्रकट हुई और दस महाविद्याओं के नाम से विख्यात हुई। बृहन्नीलतंत्र में कहा गया है कि रक्त और कृष्‍णभेद से काली ही दो रूपों में अधिष्ठित है। कृष्‍णा का नाम दक्षिणा और रक्तवर्णा का नाम सुंदरी है।
कराली, विकराली, उमा, मुञ्जुघोषा, चन्द्र-रेखा, चित्र-रेखा, त्रिजटा, द्विजा, एकजटा, नीलपताका, बत्तीस प्रकार की यक्षिणी, तारा और छिन्नमस्ता ये सभी दक्षिण कालिका के स्वरुप हैं।क्रमशः
#दक्षिणकाली_मंत्र : 
।। ॐ हूं ह्रीं दक्षिण कालिके खड्गमुण्ड धारिणी नम:।।

#दक्षिण_कालिका_के_अन्य_मन्त्र 
भगवती दक्षिण कालिका के अनेक मन्त्र हैं, जिसमें से कुछ इस प्रकार है।
 
1.क्रीं,
2. ॐ ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं।
3. ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।
4. नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा।
5. नमः आं क्रां आं क्रों फट स्वाहा कालि कालिके हूं।
6. क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रींह्रीं ह्रीं हुं हुं स्वाहा। 
 
उपरोक्त में से किसी भी मंत्र का तब जाप किया जा सकता है जबकि इसकी पूजा पद्धति और विविवत जाप की विधि ज्ञात हो। इसके बाद ध्यान, स्तुति और प्रार्थना के श्लोक भी होते हैं। 
लेखन-संकलन-सम्पादन~राहुलनाथ
#आपके_हितार्थ_नोट:- पोस्ट ज्ञानार्थ एवं शैक्षणिक उद्देश्य हेतु ग्रहण करे।
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