मयूरेश स्तोत्र साधना
मयूरेश स्तोत्र साधना
"ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
पहले पाठ में "ब्रह्मोवाच" से "शुभम्" तक का पाठ करें। बीच के पाठों में मात्र मूल स्तोत्र का पहले श्लोक से दसवें श्लोक तक का पाठ करें और अन्तिम पाठ में पुनः "ब्रह्मोवाच" से फलश्रुति सहित "सम्पूर्णम्" तक का पाठ करें। आप १००८ पाठ को ११ या २१ दिनों में सम्पन्न कर सकते हैं। यदि १०१ पाठ रोज़ किए जाएं तो १० दिनों में १०१० पाठ सम्पन्न हो जाएंगे।
स्तोत्र पाठ के पश्चात एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर देना चाहिए। इस साधना को आप चाहे तो गणेश चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी तक नियमित सम्पन्न कर सकते हैं। यदि यह सम्भव न हो तो प्रत्येक पक्ष की चतुर्थी अथवा प्रत्येक बुधवार को कर सकते हैं।
"ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा॥"
हम परम्परा अनुसार भी और चूँकि बचपन से हम सबने इसी तरह की विधियाँ दैनिक जीवन में देखी हैं, अतः हम भी उसी पर चलने के आदि हैं, जो कि शास्त्र सम्मत भी है कि किसी भी शुभ कार्य के पहले भगवान गणपतिजी का स्मरण किया जाता है। शास्त्रों में भी कहा गया है कि भगवान गणपति समस्त विघ्नों का नाश करने वाले, कार्यों में सिद्धि देने वाले तथा जीवन में सभी प्रकार से पूर्णता देने वाले हैं।
इसीलिए "कलौ चण्डी विनायको" कहा गया है अर्थात् कलियुग में दुर्गा एवं गणपति ही पूर्ण सफलता देने में सहायक है। चाहे मानव हो, देव हो या असुर हो, सभी प्रत्येक कार्य की निर्विघ्न सफलता हेतु भगवान गणपतिजी की साधना सम्पन्न करते ही हैं, स्वयं भगवान शिव ने भी गणेश साधना सम्पन्न कर अपने कार्यों को को निर्विघ्न सम्पन्न किया है।
तुलसीदासजी ने राम चरित मानस में कहा है कि -----
"जो सुमिरत सिद्धि होय, गणनायक करिवर वदन।
करउ अनुग्रह सोई, बुद्धि राशि शुभ गुण सदन ।।"
विश्व के समस्त साधक इस बात पर एक मत है कि प्रत्येक कार्य को सफलता पूर्वक सम्पन्न करने के लिए सर्वप्रथम गणपति का ध्यान या उनकी पूजा आवश्यक है। देवताओं में भी गणपति की पूजा को सर्वप्रथम स्वीकार किया है, यही नहीं अपितु भगवान शिव ने भी कार्य की सफलता के लिए सबसे पहले गणपति साधना कोआवश्यक बताया है।
सद्गुरुदेवजी ने गणपति साधना की अनेक विधियाँ बताई हैं, मान्त्रिक भी और तान्त्रिक भी, साथ ही स्त्रोत साधना भी। उन्हीं में से एक मयुरेश स्त्रोत का वर्णन भी है। यूँ तो गणपतिजी से सम्बन्धित सैकड़ों, हज़ारों स्त्रोत हैं, किन्तु मयुरेश स्त्रोत उनमें सर्वोपरि माना गया है। यह स्तोत्र अपने आप में चैतन्य और मन्त्र सिद्ध है, अतः इसका पाठ ही पूर्ण सफलता देने में सहायक है।
सभी प्रकार की चिन्ता एवं रोग, गृह-बाधा शान्ति हेतु, बच्चों के रोग निवारण हेतु, घर में सुख-शान्ति हेतु, हर क्षेत्र में उन्नति तथा प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण सफलता प्राप्त करने के लिए मयूरेश स्तोत्र को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इन्द्र ने स्वयं इस स्तोत्र के द्वारा गणपति को प्रसन्न कर विघ्नों पर विजय प्राप्त की थी।
इस स्तोत्र का पाठ सभी व्यक्ति स्त्री, पुरुष, बाल, वृद्ध, युवा कोई भी कर सकता है। हमारे जीवन में यदि इस स्त्रोत के पाठ से दिन का आरम्भ हो तो यह अति शुभ है।
साधना विधान :-----------
आप यह साधना गणेश चतुर्थी से आरम्भ कर सकते हैं। यदि यह सम्भव न हो तो इसे किसी भी माह के शुक्लपक्ष की चतुर्थी अथवा किसी भी बुधवार से शुरु किया जा सकता है।
सर्वप्रथम साधक को स्नान कर सफ़ेद या पीले वस्त्र धारण कर आसन पर बैठ जाना चाहिए। यह आसन पीला या सफ़ेद रंग का हो सकता है। साधक को पूर्व की तरफ मुँह करके बैठना चाहिए। अपने सामने गणपति की मूर्ति या चित्र स्थापित कर देनी चाहिए।
अब सबसे पहले पूज्यपाद पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का स्मरण कर पंचोपचार से पूजन करे और गुरुमन्त्र का यथाशक्ति जाप करें।
इसके बाद साधक या साधिका को भक्तिपूर्वक भगवान गणपतिजी को हाथ जोड़ कर प्रणाम करना चाहिए और निम्नानुसार ध्यान करना चाहिए ------
ॐ खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरम्
प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम्।
दन्ताघातविदारितारिरुधिरैः सिन्दूरशोभाकरम्
वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्।।
तत्पश्चात भगवान गणपति के बारह नामों का स्मरण करना चाहिए, जिससे कि हम जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकें। यात्रा पर रवाना होते समय या प्रत्येक कार्य को करने से पूर्व भी इन बारह नामों का स्मरण करना सिद्धिदायक माना गया है -----
ॐ सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
इसके बाद भगवान गणपतिजी की पूजा होनी चाहिए। देवताओं के षोडश पूजन में निम्नलिखित उपचार माने गए हैं -----
(१) आवाहन, (२) आसन, (३) पाद्य, (४) अर्घ्य, (५) आचमनीय, (६) स्नान, (७) वस्त्र, (८) यज्ञोपवीत, (९) गन्ध, (१०) पुष्प {दूर्वा}, (११) धूप, (१२) दीप, (१३) नेवैद्य, (१४) ताम्बूल, (१५) प्रदक्षिणा और (१६) पुष्पाञ्जलि।
सावधानियाँ :-----------
१. गणपतिजी की पूजा में तुलसी पत्र का प्रयोग सर्वथा निषिद्ध है।
२. गणपतिजी को दूर्वादल अत्यन्त प्रिय है।
३. अर्घ्य में जल के अतिरिक्त निम्न ८ वस्तुएँ होती है -----
(१) दही (२) दूर्वा (३) कुशाग्र (४) पुष्प (५) अक्षत
(६) कुमकुम (७) सुपारी और (८) पीली सरसों।
इन ८ वस्तुओं को एक पात्र में लेकर गणपतिजी को अर्घ्य दिया जाता है।
४. कोई सामग्री उपलब्ध न हो तो उसके स्थान पर अक्षत का प्रयोग किया जानाा चाहिए।
५. साधनाकाल में घी का दीपक प्रज्ज्वलित रहना चाहिए तथा गणपति को भोग में मोदक (लड्डू) अर्पण करना आवश्यक है।
गणपतिजी की पूर्ण पूजा करने के बाद साधक को चाहिए कि वह मयूरेश स्तोत्र के कुल १००८ पाठ सम्पन्न करे।
॥ मयूरेश स्तोत्रम् ॥
॥ ब्रह्मोवाच ॥
ॐ पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा ।
मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥१॥
परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदिस्थितम् ।
गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥२॥
सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया ।
सर्व विघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥३॥
नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम् ।
नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम् ॥४॥
इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टतमहर्निशम् ।
सदसद्वयक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥५॥
सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम् ।
सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥६॥
पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् ।
भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥७॥
मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम् ।
समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम् ॥८॥
सर्वज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् ।
सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥९॥
अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम् ।
अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥१०॥
फलश्रुति
॥ मयूरेश उवाच ॥
इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रनाशनम् ।
सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम् ॥११॥
कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात् ।
आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम् ॥१२॥
॥ इति मयूरेशस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
स्तोत्र पाठ विधि :-----------
पहले पाठ में "ब्रह्मोवाच" से "शुभम्" तक का पाठ करें। बीच के पाठों में मात्र मूल स्तोत्र का पहले श्लोक से दसवें श्लोक तक का पाठ करें और अन्तिम पाठ में पुनः "ब्रह्मोवाच" से फलश्रुति सहित "सम्पूर्णम्" तक का पाठ करें। आप १००८ पाठ को ११ या २१ दिनों में सम्पन्न कर सकते हैं। यदि १०१ पाठ रोज़ किए जाएं तो १० दिनों में १०१० पाठ सम्पन्न हो जाएंगे।
स्तोत्र पाठ के पश्चात एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर देना चाहिए। इस साधना को आप चाहे तो गणेश चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी तक नियमित सम्पन्न कर सकते हैं। यदि यह सम्भव न हो तो प्रत्येक पक्ष की चतुर्थी अथवा प्रत्येक बुधवार को कर सकते हैं।
यह स्तोत्र समस्त प्रकार की चिन्ताओं तथा परेशानियों को दूर करने वाला, समस्त प्रकार के भौतिक सुख, आर्थिक उन्नति, व्यापार में लाभ, राज्य कार्य में विजय तथा समस्त उपद्रवों का नाश करने में पूर्णतः समर्थ है।
स्त्री या बालक भी स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। किसी भी वर्ण या जाति का व्यक्ति इस पाठ को श्रद्धापूर्वक कर सकता है। स्त्रियों को चाहिए कि वह रजस्वला दिन से सात दिन तक गणपति पूजन न करे, सात दिनों तक स्त्री पूजन कार्य या मांगलिक कार्य में अशुद्ध मानी जाती है।
गणपति की पूजा में सुगन्धित द्रव्य तथा घी का दीपक विशेष महत्वपूर्ण है। साधक को चाहिए कि वह नित्य अपने नित्य पूजा कर्म में इस स्तोत्र को सम्मिलित कर लें तथा सर्वप्रथम गणपति पूजन एवं मयूरेश स्तोत्र का पाठ करे, गायत्री स्मरण भी इसके बाद किया जाना चाहिए।
इसमें कोई दो राय नहीं कि यह स्तोत्र अत्यन्त ही महत्वपूर्ण, त्वरित सफलतादायक, विघ्नों, बाधाओं और कठिनाइयों को दूर करने में समर्थ तथा रोग निवारण, सफलता एवं जीवन में समस्त प्रकार की भौतिक सुविधाओं को प्रदान करने में समर्थ व सर्वश्रेष्ठ है।
Aacharya Goldie Madan
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