मंत्र की संज्ञा ये तीन तरह की होती है
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मंत्र की संज्ञा ये तीन तरह की होती है १_पुरूष, पुरूषदेवताओ केमंत्र संग्यक होते है परन्तु जिन मंत्रो के अंत मे हुं ,फट् ,हूं हूं, ठः ठः इत्यादि होते है वे पुरूष संग्यक है २_स्त्री,,स्त्री देवताओ के मंत्र स्त्री संग्यक तो कहलाते है परन्तु जिस के अन्त मे ,स्वाहां ,स्वधा, का प्रयोग होता है वह भी स्त्री संग्यक हो जाता है ३__नपुंसक,,जिस मंत्र के अंत या आदि मे ,नमः का प्रयोग होता है वह मध्यम संग्यक अर्थात नपुंसक कहलाता है ये मंत्र अनिष्टकारक कम होते है परन्तु निरर्थक नही होते है इनमे शरणापन्न भाव अधिक रहता है उभयात्मक स्वरूप व पुरूष देवता के साथ स्त्री देवता का पल्लव एवं स्त्री देवता के साथ पुरूष प्रधान पल्लव होता है परन्तु इनका प्रभाव शिर एंव पल्लव के आधार पर होता है मंत्र के तीन भाग होते है__ मुलमन्त्र के प्रारंभ मे बीज मंत्रादि जो होते है( यथा_ॐ,ऐं, ह्री, क्ली, श्रीं भू, भर्वः, स्वः इत्यादि) उन्हे मंत्र का शिर कहॉ गया है शिर के आधार पर ही मंत्र की कामना का फल बनता है ४-मध्यभाग व्याह्रति या बीजाक्षर के बादका श्लोक(मंत्र का मध्य भाग)देवता से संबंधित रहता है ५-पल्लवः_मंत्र अत...