व्यापार वृद्धिकारक तन्त्र-बन्धन मुक्ति प्रयोग
व्यापार वृद्धिकारक तन्त्र-बन्धन मुक्ति प्रयोग जिस प्रकार देवता हैं तो दानव भी हैं, अच्छाई है तो बुराई भी है, मनुष्य हैं तो राक्षस भी हैं, प्रत्यक्ष है तो अप्रत्यक्ष भी है, उसी प्रकार षटकर्मों अर्थात आकर्षण, वशीकरण, उच्चाटन, स्तम्भन, विद्वेषण और मारण आदि में अच्छे कर्म भी हैं तो बुरे भी, जिन्हें मनुष्य अपने स्वार्थ हेतु उपयोग में लाता है और अच्छे-बुरे की सीमा को भी लाँघ जाता है। इन षटकर्मों में स्तम्भन ही बन्धन है। इसका प्रयोग कर किसी की शक्ति, कार्य, व्यापार, प्रगति आदि को कुण्ठित या अवरुद्ध कर दिया जाता है। साधारण शब्दों में बन्धन का अर्थ है बाँध देना। प्रत्यक्ष तौर पर बाँध देने की क्रिया को बाँधना कहते हैं, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से बाँधना बन्धन कहलाता है। अधिकतर लोगों को ऐसा लगता है कि बन्धन की क्रिया केवल तान्त्रिक ही कर सकते हैं और यह तन्त्र से सम्बन्धित है, परन्तु वास्तविकता इसके विपरीत है। किसी कार्य विशेष के मार्ग को अभिचार क्रिया से अवरुद्ध कर देना ही बन्धन है। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि जिस प्रकार रस्सी से बाँध देने से व्यक्ति असहा